कहा कहूँ मेरे पिउकी बात ! जोरे कहूँ सोइ अंग सुहात ।
जब मैं रही थी कन्या क्वारी, तब मेरे करम हता सिर भारी ॥
जब मेरे पिउसे मनसा दौड़ी, सतगुरु आन सगाई जोड़ी ।
तब मैं पिउका मंगल गाया, जब मेरा स्वामी ब्याहन आया ॥
हथलेवा दै बैठी संगा, तब मोहिं लीन्हीं बायें अंगा ।
जन 'दरिया' कहे, मिट गई दूती, आपा अरपि पीउ सँग सूती ॥