सब जग सोता सुध नहिं पावै, बोलै सो सोता बरड़ावै ॥
संसय मोह भरमकी रैन, अंध धुंध होय सोते ऐन ।
जप तप संजय औ आचार, यह सब सुपनेके ब्यौहार ॥
तीर्थ दान जग प्रतिमा-सेवा, यह सब सुपना-लेवा-देवा ।
कहना-सुनना, हार औ जीत, पछा-पछी सुपनो बिपरीत ॥
चार बरन और आश्रम चार, सुपना-अंतर सब ब्यौहार ॥
षट दरसन आदी भेद-भाव, सुपना-अंतर सब दरसाथ ॥
राजा राना तप बलवंता, सुपना माहिं सब बरतंता ।
पीर औलिया सबै सयाना, ख्वाबमाहिं बरतें निधि नाना ।
काजी सैयद औ सुलतना, ख्वाबमाहिं सब करत पयाना ।
सांख्य, जोग औ नौधा भकती, सुपनामें इनकी एक बिरती ॥
काया-कसनी दया औ धर्म सुपने सूर्ग औ बंधन कर्म ।
काम क्रोध हत्या पर-नास, सुपनामाहीं नरक निवास ॥
आदि भवानी संकर देवा, यह सब सुपना देवा-लेवा ।
ब्रह्मा बिस्नू दस औतार, सुपना-अंतर सब ब्यौहर ॥
उद्भिज सेदज जेरज अंडा, सुपन रूप बरतै ब्रह्मंडा ।
उपजे बरतै अरु बिनसावै, सुपने-अंतर सब दरसावै ॥
त्याग-ग्रहन सुपना-ब्यौहारा, जो जागा सो सबसे न्यारा ।
जो कोई साध जागिया चावै, सो सतगुरुके सरनै आवै ॥
कृत-कृतबिरला जोगसभागी, गुरुमुख चेत सब्द मुखजागी ।
संसय मोह भरम निसि नास, आतमराम सहज परकास ॥
राम सँभाल सहज धर ध्यान, पाछे सहज प्रकासै ज्ञान ।
जन 'दरिया' सोइ बड़भागी, जाकी सुरत ब्रह्म सँग लागी ॥