बाबुल कैसे बिसरा जाई ?
जदि मैं पति-संग रल खेलूँगी, आपा धरम समाई ।
सतगुरु मेरे किरपा कीन्ही, उत्तम बर परनाई;
अब मेर साईंको सरम पड़ेगी, लेगा चरन लगाई ॥
तैं जानराय मैं बाली भोली, तैं निर्मल मैं मैली;
तैं बतरावै, मैं बोल न जानूँ, भेद न सकूँ सहेली ॥
तैं ब्रह्म-भाव मैं आतम-कन्या, समझ न जानूँ बानी;
'दरिया' कहै. पति पूरा पाया, यह निश्चय करि जानी ॥