रामाचें जयजयकार ध्यान
अण्णा जसे शास्त्रविद्येंत निपुण होते, तसेंच श्रौतस्मार्तज्ञकर्मविधींतही अपूर्व निष्णात होते.
रामाचें जयजयकार ध्यान संस्कृत
(आरती भुवणन० मूळ व पुढें कटावाची चाल)
जयजय रामभद्र भगवन् ॥ त्रिभुवनसार्वभौम भूमन् ॥ विमलागण्यपुण्य महिमन् ॥ सत्तारक ब्रम्हानामन् ॥
अतसीकुसुमश्याम मनोहर मन्मथसुंदर पंकेरुहनवपलाशपेशल पादयुगळनखरत्नचंद्रिका धवलितदिकचक्रवालमंजुळ सिंजन्नूपुरपीतवसन परिलसक्तिंकिणीमनिगण परिणत किरणचित्रदामन् त्रिभुवनसार्वभौमभूमन् ॥१॥
जयजय पापतापवारिन् ॥ रत्नविशालमालभारिन ॥ मुनित्द्दत्पद्मसद्मचारिन् ॥ दुर्जनसर्पदर्पहारिन् ॥
नलिननाम रोमालिमलिनवलि नम्रजठर हरिमणिप्रभस्तन बृहत्कपाटविशंकटवक्ष: पीठपीवरस्कंध नंदनद्रुमोत्थसुमनोहारविराजित मलयजचर्चितवलयविभूषित बाहुयुगलपरिललितकलितशर जरठकमठवरपृष्ठ घोरधन्वन् ॥ त्रिभु० ॥२॥
जयजय भक्तजनत्रात: ॥ निर्मलतरज्ञानदात: ॥ स्वामिन्सर्वलोकधात: ॥ भावुकबालवंद्यमात: ॥
कंबुप्रतिभटकंधर सुंदरतनु हनुमंडल चारुचिबुकबिंबाधर मंदस्मितविकसितशशलांछनशकलकपोल सुनासिक कुंदकुड्मलाग्ररदन सरसिजप्रसन्नलोचन मणिमाकुंडल मृगमदतिलकितविशाल भाल कुटिलतरकुंतल मणिगणखचितस्वर्णकिरीट स्थूलमौक्तिकावतंसाविलसित सकलसौख्यधामन् ॥ त्रिभु ॥३॥
जयजय पूर्णकृपासिंधो ॥ भवदवतप्तदीनबंधो ॥ सज्जनचक्रपद्मबंधो ॥ मूर्तप्रणवनादबिंदो ॥
त्रिजगन्मंगल अनंगजनितरमंगलनाशन जगद्वंद्य जगदाद्य निखिलवेदांतवेद्य अनवद्यरूप सद्भक्तिनम्रतनु सुरासुरव्रजकिरीटसन्मणिमरीचिनीराजितपदनीरज नित्यनिरंजन निर्गुण निष्किय निष्प्रपंच निर्वासन निर्भय निर्विकल्पनिर्माय निरामय निश्चल निर्मल शुद्ध बुद्ध परिपूर्ण परात्पर जयदाशरथे सतिवल्लभ जयनारायण रावणमर्दन जयसर्वोत्तम रामरघूत्तम अनंतशंतम पंतविठ्ठलत्राण वज्रवर्मन् ॥ त्रिभुव० ॥४॥
॥ इति श्रीमद्राजांधिराज रामचंद्रपदद्वंद्वमिलिंदायमानमानसेन पंतविठ्ठलशर्मणाविरचितं जयजय करध्यानं समाप्तम् ॥
N/A
References : N/A
Last Updated : January 09, 2015
TOP