हे मेरे मन के राजहंस ! गिरिजापति भगवान् शिव के चरणरुपी प्रासाद में विश्राम कर , और स्वेच्छाविहार का आनन्द ले । यह महल भगवान् शिव के चरणों के नखॊं की पंक्ति की कान्ति से शोभायुक्त है , और उगते हुए चन्द्रमा की किरणों से नहाया हुआ है । यह लाल माणिक्यों से सुभोभित है , और हंसों के समूह इसमें विश्वाम करते हैं । यहाँ भक्ति के विविध रुपों का एकान्त में परमानन्द प्राप्त कर । ॥४६॥
ह्रदयरुपी उद्यान में , शंभुध्यान रुपी बसन्त के आगमन से , पापरुपी पुराने पत्ते झड़ गये हैं । पुण्यरुपी किसलयों से ढ़की हुई भक्तिलता खिल रही है । सद्गुणों की कलियाँ से युक्त जपवाणी दिखाई दे रही हैं । सद्ववासनाओं के फूल खिले रहे हैं । ज्ञान -आनन्दामृत की रस तरंगों से संबोधि का फल आ रहा है । ॥४७॥
हे मेरे मनरुपी राजहंस ! भगवान् शिव के ध्यानरुपी निर्मल प्रशान्त सरोवर को जा । यह सरोवर नित्यानन्दरुपी पानी से भरा हुआ है । देवता और मुनियों के ह्रदयकमल इसमें खिले हुए हैं । सद्विप्र इसमें भजन करते हैं । इसमें पाप -कल्मष धुल जाते हैं , और शुभ वासनाएँ प्रकट होती हैं । छोटे -छोटे लोगों की शरणरुपी गन्दी पोखरों में घूमने के व्यर्थ श्रम को क्यों अंगीकार करता है ॥४८॥
भक्तिरुपी कल्पलता मेरे लिये अभीष्ट फल -मुक्ति -दायिनी हो । इस भक्तिलता का आनन्दरुपी जल से सिंचन होता है , और भगवन् शिव के चरणकमलों की थाम से यह उत्पन्न होती हैं । अविचल निष्ठरुपी दृढ़ आधार का सहारा लेकर शाखा -प्रशाखाओं में फैलती हुई , एक ऊँचे पंडाल (मन ) पर लिपट कर , यह निर्मल भक्तिलता सत्कर्मो से बढ़ती है । ॥४९॥
मैं शिवा आलिड्रि .त मल्लिकार्जुन महालिड्र . की पूजा करता हूँ । जिस संध्या समय , जब अर्जुन के फूल खिलते हैं , तो भगवान् नटराज प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं । भगवान् शिव वैदिक ज्ञान के चूडान्त पर स्थित हैं , उसी प्रकार जैसे अर्जुन के पुष्पों को शिर और कानों पर धारण किया जाता है। भगवान् शिव भ्रमराम्बिका के साथ सुशोभित होते है ः अर्जुन गुंजार करते भ्रमरों से आच्छादित रहता है । भगवान् शिव की सत्पुरुष आराधना करते हैं ; अर्जुन के पुष्प सब फूलों में सुन्दर दिखते हैं । भगवान् शिव सतोगुण , रजोगुण , तमोगुण को प्रकट करते हैं ; अर्जुन के पुष्प सुगंध , रंग आदि से बडॆ कमनीय दिखाई देते हैं । भगवान् शिव श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन महालिड्र . के रुप में विराजमान हैं ; अर्जुन शैल शिखर पर सुशोभित है । भगवान् शिव शिवा द्वारा उसी भाँति आलिड्रि .त हैं जैसे अर्जुन मल्लिका द्वारा । ॥५०॥