तू साँचा साहिब मेरा ।
करम करीम कृपाल निहारौ, मैं जन बंदा तेरा ॥टेक॥
तुम दीवान सबहिनकी जानौं, दीनानाथ दयाला ।
दिखाइ दीदार मौज बंदेकूँ, काइक करौ निहाला ॥
मालिक सबै मुलिकके साँइ, समरथ सिरजनहारा ॥
खैर खुदाइ खलकमें खेलत, दे दीदार तुम्हारा ॥
मैं सिकस्ता दरगह तेरी हरि हजूर तूँ कहिये ।
दादू द्वारै दीन पुकारै, काहे न दरसन लहिये ॥