अहो नर नीका है हरिनाम ।
दूजा नहीं नाँउ बिन नीका, कहिले केवल राम ॥टेक॥
निरमल सदा एक अबिनासी, अजर अकल रस ऐसा ।
दृढ़ गहि राखि मूल मन माहीं, निरख देखि निज कैसा ॥१॥
यह रस मीठा महा अमीरस, अमर अनूपम पीवै ।
राता रहै प्रेमसूँ माता, ऐसैं जुगि जुगि जीवै ॥२॥
दूजा नहीं और को ऐसा, गुर अंजन करि बूझै ।
दादू मोटे भाग हमारे, दास बमेकी बूझै ॥३॥