बटाऊ रे चलना आज कि काल ।
समझ न देखै कहा सुख सोवै,
रे मन राम सँभाल ॥टेक॥
जैसैं तरवर बिरख बसेरा,
पंखी बैठे आइ ।
ऐसैं यह सब हाट पसारा,
आप आप कूँ जाइ ॥१॥
कोइ नहिं तेरा सजन सँगाती,
जिनि खोवै मन मूल ।
यह संसार देखि मत भूलै,
सबही सेंबल फूल ॥२॥
तन नहिं तेरा, धन नहिं तेरा,
कहा रह्यो इहि लागि ।
दादू हरि बिन क्यूँ सुख सोवै,
काहे न देखैं जागि ॥३॥