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राम रस मीठा रे , कोइ पीवै...

भजन - राम रस मीठा रे , कोइ पीवै...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


राम रस मीठा रे, कोइ पीवै साधु सुजाण ।

सदा रस पीवै प्रेमसूँ सो अबिनासी प्राण ॥टेक॥

इहि रस मुनि लागे सबै, ब्रह्मा-बिसुन-महेस ।

सुर नर साधू स्म्त जन, सो रस पीवै सेस ॥१॥

सिध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव ।

पीवत अंत न आवई, पीपा अरु रैदास ।

पिवत कबीरा ना थक्या अजहूँ प्रेम पियास ॥३॥

यह रस मीठा जिन पिया, सो रस ही महिं समाइ ।

मीठे मीठा मिलि रह्या, दादू अनत न जाइ ॥४॥

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Last Updated : September 28, 2008

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