नूर रह्या भरपूर, अमीरस पीजिये ।
रस मोहैं रस होइ, लाहा लीजिये ॥टेक॥
परगट तेज अनंत पार नहिं पाइये ।
झिलिमिल-झिलिमिल होइ, तहाँ मन लाइये ॥१॥
सहजैं सदा प्रकास, ज्योति जल पूरिया ।
तहाँ रहै निज दास, सेवग सूरिया ॥२॥
सुख-सागर वार न पार, हमारा बास है ।
हंस रहैं ता माहिं, दादू दास है ॥३॥