मन मुरिखा तैं यौंहीं जनम गँवायौ ।
साँईकेरी सेवा न कीन्हीं, इही कलि काहेकूँ आऔ ॥टेक॥
जिन बातन तेरौ छूटिक नाहीं, सोई मन तेरौ भायौ ।
कामी ह्वै बिषयासँग लाग्यो रोम रोम लपटायौ ॥१॥
कुछ इक चेति बिचारी देखौ, कहा पाप जिय लायौ ।
दादुदास भजन करि लीजै, सुपिने जग डहकायौ ॥२॥