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तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं...

भजन - तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं ।

जौलगि मैं देखौं नहिं तोहिं ॥टेक॥

इबके बिछुरे मिलन कैसे होइ ।

इहि बिधि बहुरि न चीन्है कोइ ॥१॥

दीनदयाल दया करि जोइ ।

सब सुख-आनँद तुम सूँ होइ ॥२॥

जनम-जनमके बंधन खोइ ।

देखण दादू अहि निशि रोइ ॥३॥

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Last Updated : September 28, 2008

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