पंडित राम मिलै सो कीजै ।
पढ़ि-पढ़ि बेद पुराण बखाने,
सोई तत कहि दीजै ॥टेक॥
आतम रोगी बिषय बियाधी,
सोइ करि औषध सारा ।
परसत प्राणी होइ परम सुख,
छूटै सब संसारा ॥१॥
ये गुण इंद्री अगिनि अपारा,
तासन जले सरीरा ।
तन मन सीतल होइ सदा बतावौ,
जिहि पँथ पहुँचै पारा ।
भूल न परै उलट नहिं आवै,
सो कुछ करहु बिचारा ॥३॥
गुर उपदेस देहु कर दीपक,
तिमर मिटै सब सुझै ।
दादू सोई पंडित ग्याता,
राम-मिलनकी बूझै ॥४॥