संग न छाँडौं मेरा पावन पीव ।
मैं बलि तेरे जीवन जीव ॥टेक॥
संगि तुम्हारे सब सुख होइ ।
चरण-कँवलमुख देखौं तोहि ॥१॥
अनेक जतन करि पाया सोइ ।
देखौं नैनौं तौ सुं होइ ॥२॥
सरण तुम्हारी अंतरि बास ।
चरण-कँवल तहँ देहु निवास ॥३॥
अब दादू मन अनत न जाइ ।
अंतर बेधि रह्यो लौ लाइ ॥४॥