आग्नीध्र n. प्रियव्रत तथा बर्हिष्मती के दस पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । विष्णु पुराण में अग्नीध्र है । कर्दम की कन्या नामक कन्या का पुत्र । इसे उर्सस्वती नामक बहन थी । दो बहनें और भी थीं, जिनके नाम सम्राज् तथा कुक्षि थे । यह जंबुद्वीप का अधिपति था । पुत्रप्राप्ति की इच्छा से, यह मंदराचल के पहाड में जब ब्रह्मदेव की आराधना कर रहा था, तब ब्रह्मदेव ने देवसभा में गायन करनेवाली पूर्वचित्ति नामक अप्सरा इसके पास भेजी । उसने शृंगारचेष्टा इत्यादि से आग्नीध्र का मन कामवश किया । उसके सौंदर्य, बुद्धिमत्ता इ. अलौकिक गुणों पर लुब्ध हो कर, इसने दस कोटि वर्षो तक उसका विषयोपभोग किया । उससे आग्नीध्र को नौ पुत्र हुए । उनके नामः १.. नाभि, २. किंपुरुष,३. हरिवर्ष, ४. इलावृत्त, ५. रम्यक (रम्य), ६. हिरण्मय (हिरण्वान), ७. कुरु, ८. भद्नाश्व, तथा ९. केतुमाल । कुछ काला के अनन्तर, वह अप्सरा ब्रह्मलोक चली गई । तदनंतर जंबुद्वीप के नौ विभाग कर के, प्रत्येक विभाग को अपने पुत्रों का नाम दे कर, वे विभाग उन्हें सौप कर, यह शालिग्राम नामक अरण्य में तप करने चला गया । कौन सा विभाग किसे दिया इसका हिमवर्ष (हिन्दुस्थान), २. किंपुरुष को हेमकूटवर्ष, ३. हरिवर्ष को नैषधवर्ष, ४. इलावृत्त को मेरुपर्वतयुक्त इलावृत्त वर्षे, ५. रम्यक को नील पर्वतयुक्त रम्यकवर्ष, ६. हिरण्वान को श्वेतदीपवर्ष, ७. कुरु को शृंगवद्वर्ष, ८. भद्राश्व को मेरु के पूर्व में स्थित भद्रश्ववर्ष, तथा ९. केतुमाल को गंधमानवर्ष,
[विष्णु.२.१] ;
[भा.५.१.३३,१.२२] ।