मंथरा n. कैकयी की एक कुबडी दासी, जो दुन्दुभी नामक गंधर्वी के अंश से उत्पन्न हुयी थी
[म.व.२६०.१०] । महाभारत में रामोपाख्यान में, जब राम की सहायता करने के लिए देवताओं द्वारा ऋक्षों तथा वानरों की स्त्रियों से पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख किया गया है, तब गंधर्वी दुन्दुभी को मंथरा के रुप में प्रकट होने की चर्चा मिलती है
[म.व.२६०.१०] । इसी मंथरा कैकयी के मन में भेद उत्पन्न कर राम के वनगमन का कारण बनी थी । वाल्मिकि रामायण की मंथरा कैकयी की चिरकाल से पतिता दासी है, जो राम का राज्यभिषेक सुनकर क्रोध से प्रज्वलित हो उठती है । यह कैकयी को भावी अरिष्टों की ओर ध्यान दिलाकर अपने वश में ऐसा कर लेतीहै कि, वह इसकी प्रशंसा करने लगती है
[वा.रा.अयो.९.४१-५०] । कैकेयी इसके द्वारा ही समझाये जानेपर राम को वन में भेजने के लिए प्रवृत्त हुयी । कैकेयी राम के राज्यभिषेक से अत्यधिक प्रसन्न थी, किन्तु इसके द्वारा दी गयी दलीलों को सुनकर वह हतबुद्ध हो गयी, और दशरथ से वर मॉंग कर राम को वन भेजा
[वा.रा,अयो.७.०९] । शत्रुघ्न इसके इस दुष्कार्य से इतने क्रुद्ध हो उठते है कि, वह मंथरा को पीटते भी है
[वा.रा.अयो.७८] । अग्नि में, मंथरा के इस उत्पीडन को राम के वनवास का कारण बताया है
[अग्नि.५.८] । आनन्द रामायण में लिखा है कि, मंथरा कृष्णावतार के समय जन्म लेगी, तथा पूतना के रुप में कृष्ण के द्वारा मारी जायेगी
[आ.रा.९.५.३५] । अन्य स्थल पर कंस के यहॉं कुब्जा के रुप में अवतार लेने की बात भी कही गयी है
[आ.रा.१.२.३] । इसी प्रकार पद्मपुराण के पाताल खण्ड के गौडीय पाठ
[पद्म. अध्याय १५] , आनन्द रामायण
[आ.रा.१.२.२] । कृत्तिवास रामायण
[कृ.रा.२.४] । में इसकी कथा प्राप्त है । बाद के अनेक वृत्तान्तों में मंथरा मोहित करने के लिए सरस्वती के भेजे जाने का भी वर्णन मिलता है
[अ.रा.२.२.४४] ;
[आ.रा.१.६.४१] । तोरवो रामायण में मंथरा को विष्णु की माया का अवतार माना गया है ।
मंथरा n. इस प्रकार प्राचीन एवं अर्वाचीन राम साहित्य में इसका नाम सर्वत्र प्राप्त है । तुलसीदास के द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ में कवि ने अधिदैविक तत्व का योग कर इसे निर्दोष साबित किया है । तुलसी मंथरा का कटु चित्रण करने के पूर्व कह देते है--- ‘गई गिरा मति फेरि’ । राम के अवतार कारण का लक्ष्य देवों की दुःखनिवृत्ति बतलाया गया है, अतएव देवताओं को रामवनवास की प्रेरणा सरस्वते के द्वारा देना संगतपूर्ण जान पडता है । तुलसीद्वारा चित्रित मंथरा बडी वाक्पट्ट, अनुभवी, कुशल दूती की भॉंती है, जो बडे मनोवैज्ञानिक ढंग स केकैर्यी के हृदय के भावों को परिवर्तित कर, राम को वन भेजने के लिए उसे विवश कर देती है ।
मंथरा II. n. विरोचन दैत्य की कन्या । यह दैत्यकन्या सम्पूर्ण पृथ्वी को विनाश करने के लिए तत्पर हुयी, तब इन्द्र ने इसका वध क्या । इसकी कथा रामयण में राम के द्वारा तारकावध के समय कही गयी है । इसी की कथा बता कर राम ने लक्ष्मण से कहा था कि, स्त्री का वध करना अवश्य उचित नहीं है, किन्तु जब आवश्यकता ही आ पडे, तो स्त्रीवध किसी प्रकार हेय कार्य नहीं है
[वा.रा.बा.२५.२०] ।