कुब्जा n. एक विरुप स्त्री । दुर्दैव से इसे बाल्यावस्था में ही वैधव्य प्राप्त हुआ । इसने साठ वर्षो तक अपना जीवन पुण्यकर्म में व्यतीत किया । प्रत्येक वर्ष माघस्नान भी किया । तदनंतर यह वैकुंठलोक में गई । सुंदोपसुंद का नाश करने के लिये, इसने तिलोत्तमा के नाम से अवतार लिया । इसके हावभावों से मोहित हो कर, सुंदोपसुंद एक दूसरे से लड मरे । तब इसका अभिनंदन कर, ब्रह्मदेव ने इसे सूर्यलोक में स्थान दिया
[पद्म. उ.१२६] ।
कुब्जा II. n. कंस की दासी । यह शरीर के तीन स्थानों में वक्र थी । कंस ने धनुर्याग के लिये कृष्ण तथा बलराम को मथुरा में लाया । तब कृष्णप्रसाद से इसका शरीर सरल हुआ
[भा.१०.४२] ;
[ब्रह्म.१९६] ।
कुब्जा III. n. कैकयी की मंथरा नामक दासी का अन्य नाम (मंथरा देखिये) ।