सुदास n. (सो. नील.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार च्यवन राजा का पुत्र, एवं सहदेव राजा का पिता था
[वायु. ९९.२०८] ;
[विष्णु. ४.१९.७१] । मत्स्य में इसे चैद्य राजा का पुत्र कहा गया
[मत्स्य. ५०.१५] । इसे बृहद्रथ नामान्तर भी प्राप्त था । पौराणिक साहित्य में प्राप्त इसकी वंशावलि उत्तर पांचाल देश के सुदास पैजवन राजा से काफ़ी मिलती जुलती है, जिससे प्रतीत होता है कि ये दोनों एक ही थे (सुदास पैजवन देखिये) ।
सुदास (पैजवन) n. उत्तर पांचाल देश का एक सुविख्यात राजा, जिसने ‘दाशराज्ञ युद्ध’ नामक सुविख्यात रूप में युद्ध में दस सामर्थ्यशाली राआजों पर विजय प्राप्त किया था
[ऋ. ७.१८] । दाशराज्ञ में इसके द्वारा प्राप्त किये गये विजय का निर्देश ऋग्वेद में अन्यत्र भी प्राप्त है
[ऋ. ७.२०.२, २५.३, ३२.१०] । ‘दाशराज्ञ युद्ध’ सं संबंधित निर्देशों में, इसे सर्वत्र ‘तृत्सुभरतों’ का राजा कहा गया है ।
सुदास (पैजवन) n. ऋग्वेद में सर्वत्र सुदास राजा को ‘पैजवन’ उपाधि दी गयी है
[ऋ. ७.१८.२३] । सुदास ‘पैजवन’ का एक सूक्त भी प्राप्त है
[ऋ. १०.१३३] । किन्तु ‘पैजवन’ इसका पैतृक नाम है, या कुल नाम है यह कहना कठिन है । निरुक्त में इसे ‘पिजवन’ राजा का पुत्र कहा गया है, एवं इस प्रकार ‘पैजवन’ इसका पैतृक नाम बताया गया है
[नि. २.२४] । किन्तु प्रत्यक्ष ऋग्वेद में एक स्थान पर इसे दिवोदास राजा का पुत्र
[ऋ. ७.२८.२५] , एवं देवदत् राजा का पौत्र
[ऋ. ७.१८.२२] कहा गया है । ऐतरेय ब्राह्मण में, दिवोदास को वध्ऱ्श्र्व राजा का पुत्र कहा गया है । संभवतः ‘देववत्’ वध्ऱ्श्र्व राजा की ही एक उपाधि होगी, अथवा वह वध्ऱ्श्र्व का मातामह होगा
[ऐ. ब्रा. ८.२१] । आधुनिक अभ्यासक इसे ‘पिजवन’ का पुत्र, एवं दिवोदास का पौत्र मानते है । इसके नाम का ‘सुदास्’ पाठ भी ऋग्वेद में कई स्थानों पर प्राप्त है ।
सुदास (पैजवन) n. वसिष्ठ ऋषि के द्वारा इसके राज्याभिषेक किये जाने का निर्देश ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त है
[ऐ. ब्रा. ८.२१] । किन्तु ऋग्वेद में एक स्थान पर विश्वामित्र को इसका पुरोहित कहा गया है, एवं विपाश (बियास) एवं शुतुद्री (सतलज) नदियों पर इसके विजयी अभियानों के साथ उसके उपस्थित होने का, एवं इसके द्वारा एक अश्वमेध यज्ञ कराने का निर्देश वहाँ प्राप्त है
[ऋ. ३.५३. ९-११] । इन सारे निदेंशों से प्रतीत होता है कि, सर्वप्रथम इसका पुरोहित विश्वामित्र था
[ऋ. ३.३३.५३] । किंतु उसके इस पद से भ्रष्ट होने के पश्चात्, वसिष्ठ ऋषि भरत राजवंश का एवं सुदास राजा का पुरोहित बन गया । तदुपरांत विश्वामित्र ऋषि इसके शत्रुपक्ष में शामिल हुआ, एवं उससे इसके विरुद्ध दाशराज्ञ युद्ध में भाग लिया (वसिष्ठ मैत्रावरुणि एवं विश्वामित्र देखिये) । उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में भी सुदास् एवं विश्वामित्र ऋषि के घनिष्ठ संबंधों के निर्देश पुनः पुनः प्राप्त है ।
सुदास (पैजवन) n. ऋग्वेद के सभी मंडलों में दाशराज्ञ युद्ध का निर्देश पुनः पुनः आता है, जिससे प्रतीत होता है कि उक्त ग्रंथरचना काल में, यह युद्ध काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता था । ऋग्वेद के सातवें मण्डल में इस युद्ध का सविस्तृत वर्णन करनेवाले अनेक सृक्त प्राप्त है
[ऋ. ७.१८] । इस युद्ध में इसने तुर्वश, द्रुह्यु, आदि दस राजाओं से युद्ध किया, एवं इन सारे राजाओं को परास्त कर यह विजयी साबित हुआ । दाशराज्ञ युद्ध में इसके विपक्ष में भाग लेने वाले राजाओं के नाम वैदिक साहित्य में विभिन्न प्रकार से पाये जाते है, जिनकी संख्या १० से कतिपय अधिक प्राप्त होती है, इससे प्रतीत होता है कि, इस युद्ध में ‘दाशराज्ञ’ (दस राजा) शब्द का प्रयोग ‘अनेक’ अर्थ से किया गया होगा ।
सुदास (पैजवन) n. दाशराज युद्ध में सुदास के विपक्ष में भाग लेनेवाले राजाओं की नामावलि निम्न प्रकार पायी जाती हैः-- १. शिम्यु; २. तुर्वश; ३. द्रुह्यु; ४. कवप; ५. पुरु (पूरु.); ६. अनु; ७. भेद; ८. शंबर; ९. वैकर्ण; १०. दूसरा वैकर्ण; ११. यदु; १२. मत्स्य; १३. पक्थ; १४. भलानस्; १५. अलिन्; १६. विषाणिन्; १७. अज; १८. शिब; १९. शिग्रु; २०. यक्षु; २१. युध्यमधि; २२. याद्व; २३. देवक मान्यमान; २४. चायमान कपि; २५. सुतक; २६. उचथ; २७. श्रुत; २८. बृद्ध; २९. मन्यु. ३०. पृथु. उपर्युक्त राजाओं की नामावलि के संबंध में ऋग्वेद के भाष्यकारों में भी एकवाक्यता नहीं है । उक्त नामावलि में से १३ से १६ तक के नाम, राजाओं के न हो कर पुरोहितों के थे, ऐसा सायणाचार्य का कहना है । १७ से २९ तक के राजाओं की ऐतिहासिकता विवाद्य है ।
सुदास (पैजवन) n. ऋग्वेद के एक सूक्त में त्रसदस्यु राजा के साथ इसके द्वारा युद्ध करने का निर्देश प्राप्त है
[ऋ. ७.१९.३] । ऋग्वेद में अन्यत्र त्रसदस्यु राजा के पिता पुरुकुत्स राजा के द्वारा यह पराजित होने का निर्देश प्राप्त है
[ऋ. १.६३.७] ।
सुदास (पैजवन) n. इसकी पत्नी का नाम सुदेवी था, जो इसे अश्विनों की कृपा से प्राप्त हुई थी
[ऋ. ३.५३.९-११] । इसके पुत्र एवं वंशज ‘सौदास’ सामूहिक नाम से सुविख्यात थे । वसिष्ठ ऋषि के पुत्र शक्ति वसिष्ठ के सौदासों के साथ किये संघर्ष का निर्देश वैदिक साहित्य में प्राप्त है । उत्तर कालीन वैदिक साहित्य में, अयोध्या के मित्रसह कल्माषपाद राजा के पिता सुदास, एवं सुदास पैजवन इन दोनों को एक ही राजा मानने की भूल अनेक बार की गयी है । विशेष कर शक्ति वासिष्ठ के संबंधित कथाओं में, यह भूल विशेष कर प्रतीत होती है । किन्तु ये दोनों सर्वतः विभिन्न राजा थे (सुदास सार्वकाम देखिये) ।
सुदास (सार्वकाम) n. (सू. इ.) अयोध्या का एक राजा, जो भागवत एवं विष्णु के अनुसार सर्वकाम राजा का पुत्र, एवं मित्रसह कल्माषपाद राजा का पिता था
[भा. ९.९.१८] ;
[विष्णु. ४.४.३] ; कल्माषपाद देखिये ।
सुदास II. n. (सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा, भागवत के अनुसार बृदद्रथ राजा का पुत्र, एवं शतानीक राजा का पिता था
[भा. ९.२२.४३] । अन्य पुराणों में इसे तिमि राजा का पुत्र कहा गया है ।
सुदास III. n. एक यवन राजा
[मनु. ७] ।
सुदास IV. n. एक शूद्र, जो अपने अगले जन्म मे कृतघ्न नामक पिशाच बन गया । वैशाख व्रत का माहात्म्य बताने के लिए इसकी कथा पद्म में दी गयी है
[पद्म. पा. ९८] ।