नील n. कश्यप एवं कद्रू से उत्पन्न एक नाग
[म.आ.३१.७] ।
नील II. n. विश्वकर्मा के अंश से उत्पन्न हुआ रामसेना का एक वानर
[भा.९.१०.१६] ;
[म.,व.२७४.२५] । इसने दूषण का छोटा भाई प्रमाथि का वध किया था ।
नील III. n. अग्नि के अंश से उत्पन्न हुआ । रामसेना एक वानर
[वा.रा.कि.३१] । बिभीषण से मिलने के लिये, राम लंकानगरी जा रहे थे । उस समय किष्किंधा नगरी में, यह राम के दर्शन के लिये आया था
[पद्म. सृ.३८] । रामरावण युद्ध में, इसने निकुंभ, प्रहस्त, एवं महोदर राक्षसों से घनघोर युद्ध किया; एवं निकुंभ तथा महोदर का वध किया
[वा.रा.यु.४३.५८,७०] । बाद में राम के अश्वमेधयज्ञ के समय, यह शत्रुघ्न के साथ अश्वर क्षणार्थ देशविदेश गया था
[पद्म.पा.११] ।
नील IV. n. (सो. सह.) अनूप देश का एक राजा एवं पांडव पक्ष का महान् योद्धा । यह उदार, रथी, संपूर्ण अस्त्रों का ज्ञाता, एवं महामनस्वी था
[म.आ.१७७.१०] । भारतीय युद्ध में, इसका अश्वत्थामन् के साथ दो बार युद्ध हुआ था । पहली बार अश्वत्थामन ने इसके सीने में प्रहार कर, इसे घायल किया
[म.भी.९०.३३] ; एवं दूसरी बार इसका वध किया
[म.द्रो.३०.२५] । धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय से भी इसका युद्धा हुआ था
[म.द्रो.२५.४३] ।
नील IX. n. भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
नील V. n. (सो. पूरु.) पुरुवंश का सुविख्यात राजा । यह अजमीढ एवं नालिनी का पुत्र था । इसका पुत्र शांति । नील ने उत्तर पांचाल देश में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया । इसकी राजधानी अहिच्छत्र नगरी थी । इसने उत्तर पांचल के सुविख्यात ‘नीलराजवंश’ की नींव डाली ।
नील VI. n. उत्तर पांचाल देश का सुविख्यात राजवंश । इस वंश के नील से पृषत् के सोलह राजाओं का निर्देश पुराणों में अनेक स्थानों पर प्राप्त है
[वायु.९९.१९४-२११] ;
[मत्स्य.५०.१-१६] । उन राजाओं के नाम इस प्रकार हैः---१. नील, २. सुशांति, ३. पुरुजानु, ४. रिक्ष, ५. भर्म्याश्व, ६. मुद्नल, ७. वध्र्यश्व, ८. दिवोदास, ९. मित्रयु, १०. मैत्रेय, ११. च्यवन, १२. पंचजन, १३. सुदास, १४. सहदेव, १५. सोमक, पृषत् यह राजवंश बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्यों कि, इनमें से अनेक राजाओं का निर्देश वैदिक ग्रंथों में मिलता है । इस वंश के मुद्नल, वध्र्यश्व, दिवोदास, सुदास, च्यवन, सहदेव, सोमक, पिजवन (पंचजन) आदि राजाओं का निर्देश ऋग्वेद एवं ब्राह्मणादि ग्रंथों में प्राप्त है । ऋग्वेद में वर्णित दाशराज युद्ध ‘सुदास’ ने किया था । पृषत् राजा का उत्तराधिकारी द्रुपद था । द्रुपद राजा एवं द्रोणाचार्य के संघर्ष के कारण, पांचाल देश उत्तर एवं दक्षिण विभागों में पुनः एक बार बॉंट दिया गया (द्रुपद एवं द्रोण देखिये) ।
नील VII. n. दक्षिणापथ में से माहिष्मती नगरी का राजा, एवं दुर्योधनपक्ष का महान् योद्धा । यह क्रोधवश नामक दैत्य के अंश से उत्पन्न हुआ था । यह द्रौपदीस्वयंवर के लिये गया था
[म.आ.१७७.१०] । संभवतः ‘नीलध्वज’ इसीका ही नामांतर था (नीलध्वज देखिये) । पांडवों के राजसूय यज्ञ के समय, सहदेव द्वारा किये गये दक्षिण दिग्विजय में, इसका उससे भीषण युद्ध हुआ था
[म.स.२८.१८] । उस युद्ध के समय, अग्निदेव ने इसे सहायता की थी । अग्नि को इसने अपनी कन्या प्रदान की थी । उस कारण, अग्नि ने इसकी सेना को अभयदान दिया था । फिर भी सहदेव ने इसे पराजित किया, एवं यह सहदेव की शरण में गया
[म.स.२८.३६-३७] । इसने नर्मदा नदी को भार्यारुप में पा कर, उसके गर्भ से सुदर्शना नामक कन्या उत्पन्न की । उसे अग्नि चाहने लगा । फिर इसने उन दोनों का विवाह करा दिया । उन्हें सुदर्शन नामक पुत्र हुआ
[म.अनु.२] । भारतीययुद्ध में, यह दुर्योधन के पक्ष में शामिल था
[म.उ.१९.२३] । यह कौरवों के पक्ष का एक ख्यातिप्राप्त रथी था
[म.उ.१६३.४] ।
नील VIII. n. (सो.) एक राजा एवं यदुपुत्रों में से तीसरा पुत्र ।
नील X. n. ०. भृगुकुल का एक ब्रह्मर्षि ।