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मातृका ध्यान विधि

कालीतंत्र - मातृका ध्यान विधि

तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे.


मातृका ध्यान विधि

त्रिगुणायाश्च देवेशि ध्यानं पूर्व उदाहृतम् ।
अधुना संप्रवक्ष्यामि मातृका ध्यानमुत्तमम् ॥
पंचाशल्लिपिभिर्विक्त मुखदोः पन्मध्य पक्षस्थलीम् ।
भास्वन्मौलि निबद्ध चंद्र शकलामापीन तुंगस्तनीम् ॥
मुद्रामक्षगुणं सुघाड्य कलशं विद्यां च हस्तांबुजै ।
विभ्राणां विशद् प्रभां त्रिनयनां वाग्देवतामाश्रये ॥

भावार्थः शिव बोले, हे पार्वती ! सत्व, रजः, तमः स्वरूपा देवियों की ध्यान विधि के बाद अब मातृका ध्यान विधि का श्रवण करो । ५० मातृका ध्यान से मुंह, हाथ, पैर, कटि प्रदेश, वक्ष का विभाजन हुआ है । जिनकी मौली (चोटी का मुकुट) में चंद्रमा अर्द्धरूप से सुशोभित है, जो उन्नत स्तनोंवाली हैं, जिनके हाथों में मुद्रा, अक्षमाला (रुद्राक्ष की माला) व पुस्तक सुशोभित है और जो प्रभावान हैं, उन त्रिनेत्री वाग्देवी का ध्यान करना चाहिए ।

गुरोरपि महेशानि पूर्वोक्त ध्यानमाचरन् ।
पाद्यादिभिर्वरारोहे संपूज्य प्रजपेन्मनूम् ॥

भावार्थः हे देवी ! गुरुदेव का उपरोक्त रीति से ही ध्यान करना चाहिए । ध्यानोपरांत पाद्य आदि से पूजा व जाप करना वांछनीय है ।

पूर्वोक्तः यस्य यद्‌बीजं तन्मंत्रं तस्य निर्णयम् ।
अं डाकिन्यै नमः स्वाहा कं राकिन्यै नमस्ततः ॥
टं लाकिन्यै नमः स्वाहा पं काकिन्यै नमस्ततः ।
वं शाकिन्यै नमः स्वाहा हं हाकिन्यै नमस्ततः ।
तत्तत् ध्यानेन इत्युक्त्वा पूजयेदुपचारतः ॥

भावार्थः हे देवी ! जिसका जो बीज है उसी से उसका मंत्र भी बनता है । यथाः अं डाकिन्यै नमः स्वाहा । कं राकिन्यै नमः स्वाहा, टं लाकिन्यै नमः स्वाहा, पं काकिन्यै नमः स्वाहा, वं शाकिन्यै नमः स्वाहा, हं हाकिन्यै नमः स्वाहा । इन देवियों का पूर्वोक्त ध्यान करने के बाद मंत्रोच्चारण कर पूजा करनी चाहिए ।

उक्त बीजेन पुटितं कृत्वा मंत्रं जपेत् यदि ।
तदा सिद्धौ भवेन्मंत्रो शापादि दोषदूषितः ॥

भावार्थः इसके बाद पूर्व में कहे गए बीजों से संपुटन देकर मंत्रों का जाप करना चाहिए । इससे मंत्र शाप विमोचित होकर सिद्ध होते हैं ।

इति ते कथितं दिव्यं कलि कालस्य सम्मतम् ।
कलौ भारतवर्षे च नान्यद्वर्ष कदाचन ।
शमादि षोडश भंडारं डाकिनी सिद्धि संयुतम् ॥

भावार्थः हे पार्वती ! इस प्रकार कलियुग में जो दिव्य है उसका मैंने वर्णन किया है । कलियुग मे भारतवर्ष के समान कोई वर्ष (देश) नहीं है । डाकिनी की सिद्धि होने पर शमादि १६ भंडार सुलभ होते हैं ।

चंडिकादि दश भांडारं काकिनी सिद्धि संयुतम् ।
शोभादि दश भांडार लाकिनी सिद्धि निर्णयम् ॥
गदादि दश भांडारं राकिनी सिद्धि निर्णयम् ।
कल्याणीत्यादि कीर्तियंतं शाकिनी सिद्धि निर्णयम् ।
वद्धादि विलक्षणांतं हाकिनी सिद्धि निर्णयम् ।
गुरुदेवं विना भद्रे निष्फलं श्रमः केवलम् ॥
कलिकाले वरारोहे कलहं गुरु शिष्ययोः ।
भविष्यति न संदेहः प्रहारं गुरु शिष्ययोः ॥

भावार्थः काकिनी की सिद्धि से चंडकादि दस भंडार, लाकिनी की सिद्धि से शोभादि दस भंडार, राकिनी की सिद्धि से गदादि दस भंडास व शाकिनी की सिद्धि से कल्याणी व कीर्ति तक की सिद्धियां प्राप्त होती हैं । हाकिनी की सिद्धि से अद्‌भुत सिद्धियां प्राप्त होती हैं । हे सुंदरी ! गुरु के अभाव में साधना का फल नहीं मिलता । कलियुग में तो ग्रुरु-शिष्य के मध्ये कलह तक हो जाता है ।

इति ते कथितं सर्वं कालिकायाः सुदुर्लभम् ।
कालिका भैरवो देवे जागर्त्ति हि सदा कलौ ॥
तारा चैव महाविद्या तथा त्रिपुरसुंदरी ।
धनदा छिन्नमस्ता च मातंगी बगलामुखी ॥
त्वरिता अन्नपूर्णा तथा वाग्वादिनी प्रेये ।
महिषघ्नी विशालाक्षी तारिणी भुवनेशिका ॥
धूमावती भैरवी च तथा प्रत्यंगिरादिका ।
दुर्गा शाकंभरी चैव कलिकाले हि निद्रिता ॥
रतेषां जाप मात्रेण निद्राभंगेति जायते ।
निद्राभंगे कृते देवि सिद्धि हानिश्च जायते ॥
किं तासां जाप पूजायां हानिः स्यादुत्तरोत्तम् ।
ब्राह्मणे क्षत्रिये वैश्ये शूद्रे विद्या प्रशस्यते ॥

भावार्थः हे पार्वती ! मैंने तुम्हें अति दुर्लभ कालिका मंत्र का उपदेश दिया है । कलियुग में भैरव व कालिका देवी ही जाग्रत कहे गए हैं । जबकि महाविद्या तारा, त्रिपुर सुंदरी, धनदा, छिन्नमस्ता, मातंगी, बगलामुखी, त्वरिता, अन्नपूर्णा, वाग्वादिनी, महिष संहारिणी, विशाल नेत्रोंवाली,, तारिणी, भुवनेश्वरी, भैरवी, धूमावती, प्रत्यंगिरा आदि तथा दुर्गा, शाकंभरी देवियां सुप्तावस्था मे रहती हैं । इनकी निद्रा जाप के द्वारा ही भंग होती है । लेकिन निद्रा भंग होने से सिद्धि की हानि भी होती है । हे पार्वती ! इन देवीयों की पूजा करने से हानि ही होती है । चतुवर्गों के लिए मंत्र विद्या ही बताई गई है ।

सत्यादि च चतुर्युगे सर्व जातिषु कालिका ।
प्रशस्ता च कालिका विद्या अस्याश्च फलबोधिका ।

भावार्थः हे पार्वती ! सत्ययुग, त्रेता, द्वापर व कलियुग में कालिका देवी ही प्रशस्त मानी गई हैं । इनकी विद्या (कालिका) सभी के लिए फलदायी कही गई है ।

उपायास्तत्र वक्ष्यामि येन सिद्धिः प्रजायते ।
सहस्रं डाकिनीमंत्रं निशायां प्रजपेत् यदि ॥
बहुकाले तदा सिद्धिर्यायते नात्र संशयः ॥
स्त्री भूद्राणां पुरश्चर्यां नास्ति भद्रे कदाचन ।
जपपूजा सदैवासां प्रशस्ता वीरवंदिते ॥

भावार्थः शिव बोले,  हे पार्वती ! अब मैं तुम्हें ऐसा उपाय (विधि) बताता हूं जिससे सिद्धि की प्राप्ति हो । रात्रि के समय १००० बार डाकिनी मंत्र का जाप करने से अवश्य ही सिद्धि की प्राप्ति होती है । हे भद्रे ! स्त्री व शूद्र को पुरश्चरण नहीं करना चाहिए । ये लोग जाप, पूजा करके ही सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं ।

चंद्र सूर्योपरागे च शूद्राणां सिद्धिरुतमा ।
जायते सुभगे मात गुरु भक्तिर्भवेत यदि ॥
तदा सिद्धिमवाप्नोति गुरुभक्त्या विशेषतः ॥

भावार्थः चंद्र व सूर्य ग्रहण काल में जाप करने से शूद्र को भी सिद्धि सुलभ हो जाती है । यदि माता व गुरु हैं तो उनकी भक्ति (सेवा) करने से भी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है ।

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Last Updated : December 28, 2013

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