काली के रूप
जिस प्रकार काल (रुद्र) के आठ रूप हैं, उसी प्रकार काली के भी आठ रूप हैं-दक्षिण काली, संततिप्रदा काली, स्पर्शमणि काली, चिंतामणि काली, सिद्धि काली, कामकला काली, गुप्त काली व हंस काली ।
उपरोक्त काली रूपों में दक्षिण या दक्षिणा काली रूप सर्वाधिक प्रचलित है । हमारे यहां दक्षिण काली की ही पूजा अधिक की जाती है । तंत्रशास्त्रों में भी इसी रूप की महत्ता अधिक है । दक्षिण काली के नाम से दक्षिण दिशा यम भी भयभीत रहता है ।
श्मशानवासिनी
काली को श्मशानालयवासिनी कहा गया है । इस संदर्भ में शाक्त मत के लोगों का ऐसा मन है कि कैलाश पर्वत के निकट श्मशान नामक एक स्थल है, जहां सदैव विचरण करते रहने के कारण ही काली को श्मशानवासिनी कहा जाता है ।
दूसरे शब्दों में श्मशान वह स्थल कहलाता है, जहां पांचों तत्त्व (जल, पृथ्वी, भूमि, वायु, आकाश) का समन्वय हो । चूंकि काली इस स्थल पर रमण करती है, इसलिए भी उसे श्मशानवासिनी कहा जाता है ।
मीमांसक इसी बात को दूसरे रूप में इस प्रकार कहते हैं कि काली वस्तुतः ब्रह्म तत्त्व है और शरीरस्थ ह्रदयरूपी श्मशान में ज्ञानाग्निरूपी चिता सदैव प्रज्ज्वलित रहती है । ऐसे श्मशान में काली का निवास है । अतः उसे श्मशानवासिनी कहा गया है । काली के अन्य नाम इस प्रकार हैं: दिगंबरा, पीनोन्नत पयोधरा, नित्य यौवनवती, शशि शेखरा, महाघोरा, प्रकटितदासना, बालावतंसा, स्मितमुखी, मुक्त केशिनी, शिवा, कंकाली, करालकालिनी, करालमुखी आदि ।