हिंदी सूची|भारतीय शास्त्रे|तंत्र शास्त्र|कालीतंत्र| कालविनाशिनी काली कालीतंत्र महाकाली काली पूजा बलिदान काली मंत्र एवं ध्यान गुप्त काली मंत्र साधना विधि अर्घ्य स्थापन पूजन यंत्र भैरव पूजन कालविनाशिनी काली काली के रूप भद्रकाली के फलदायी मंत्र महाकाली के ऐश्वर्यदायी मंत्र आवरण पूजा भैरव-पूजन भैरवी-पूजन श्मशानकाली साधना अन्य मंत्र दक्षिणकालिका कवचम् काली कीलकम् श्री जगन्मंगल कवचम् कालीक्रम स्तवम् अथ अर्गलम् काली स्तवः महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय स्तोत्रम् कालीकर्पूर स्तोत्रम् कालिका हृदय स्तोत्रम् कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम् काली सहस्त्राक्षरी काली बीज सहस्त्राक्षरी काली अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् काली के १०८ नाम काली शतनाम स्तोत्रम् काली क्षमापराध स्तोत्रम् ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् गुरु-पूजा विधि महाकाली मंत्र वर्णन मनोपूरक रहस्य पुरश्चरण विधि आदि-अंत का रहस्य मातृका ध्यान विधि कालीतंत्र - कालविनाशिनी काली तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे. Tags : kalishastratantraकालीतंत्रशास्त्रहिन्दी कालविनाशिनी काली Translation - भाषांतर कालविनाशिनी कालीकाला का भी विनाश कर देनेवाली देवी काली कहलाती है । काली की अनेक रूपों में आराधना की जाती है । काली तंत्र में दक्षिण काली (काली के ही अन्य रूप) का वर्णन करते हुए इसे करालवदना, मुक्तकेशी, दिगम्बरा, मुंडमाला विभूषिता, चतुर्हस्ता कहा गया है । काली के चार हाथों मे क्रमशः निचले बाएं हाथ में तत्काल भेदित शीश, ऊपरी बाएं हाथ में खड्ग, निचले दाएं हाथ में अभय, खप्पर व ऊपरी दाएं हाथ में आयुध विशेष सुशोभित रहता है ।वाल्मीकि रचित गुप्त रामायण (अदभुत रामायण) में वर्णन मिलता है कि जब श्रीराम ह्जार मुख वाले रावण से युद्ध करते हुए मूर्च्छित हो गए, तब सीता ने उन्हें दिवंगत समझकर इतना अधिक कोप किया कि उनका मुखमंडल काला हो गया । इसी स्वरूप में उन्होंने हजार मुखी रावण का वध कर डाला । सीता का यह स्वरूप भी काली का स्वरूप ही कहलाता है ।काली का वर्ण महामेघवत् है । यह शवरूप महादेव पर स्थित अर्द्धचंद्रतुल्य भालवती, त्रिनयना है । काली को ओज, पराक्रम, विजय, वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है । काली का संबंध प्रलयकालीन रात्रि के मध्यकाल से है । इस काल में काली भीषण रूप वाली होती है । लेकिन तांत्रिकों के लिए यही रूप अभयकारी होता है । सृष्टि के विनाश के पश्चात काली दिगंबरा रहती है तथा जब सारा विश्व श्मशान बन जाता है तब इस महाशक्ति का उत्थान होता है ।ब्रह्मस्वरूपा काली ही आद्याशक्ति है । प्रारंभ में दक्षिण भैरव ने ही काली की पूजा की थी । अतः इसे दक्षिण काली अथवा दक्षिणा काली भी कहा जाता है । रावण पुत्र मेघनाद ने भी लक्ष्मण से युद्ध करने से पूर्व गुप्त काली की साधना की थी ।मार्कंडेय पुराण में काली को नित्य कहा गया है । यही काली समय-समय पर अनेक रूपों में अवतरित होती है तथा देवताओं, दैत्यों, मनुष्यों का कल्याण करती है ।काली और काल में घनिष्ठता है । सृष्टिगत जितने भी पदार्थ हैं, उनका क्षय काल ही करता है । काली भी सृष्टि का संहार करनेवाली महाशक्ति है । सांख्यशास्त्र के अनुसार काल की उत्पत्ति आकाश तत्त्व से हूई है । नैयायिक मतानुसार काल सदैव विद्यमान रहता है तथा जागतिक पदार्थों की उत्पत्ति भी काल के द्वारा ही होती है । इसीलिए कहा गया है:कालः पचति भूतानि, कालः संहरति प्रजा: ।भर्तृहरि रचित ग्रंथ वाक्य प्रदीप में काल के संदर्भ में कहा गया हैः अव्याहताः कला यस्य काल शक्तिमुपाश्रिताः जन्मादयो विकाराः षड्भाव भेदस्य योनयः ॥यहां काल का तात्पर्य सदाशिव, रुद्र, भैरव से है । यह आश्चर्य ही कि यह काल भी काली के चरणों में लेटा रहता है । इसी से काली की महत्ताव स्पष्ट है । N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP