साधना विधि
साधक पवित्रतापूर्वक आसन पर बैठे तथा निम्नवत क्रियाएं संपन्न करे । यथाः
आचमन
क्रीं मंत्र से तीन बार आचमन करे तथा ॐ काल्यै नमः । ॐ कपालिन्यै नमः मंत्रोंको बोलकर होंठों को शुद्ध करे ।
ॐ कुल्लायै नमः मंत्र द्वारा हस्त-प्रक्षालन करे । ॐ कुरु कुल्लायै नमः मंत्र से मुख का, ॐ विरोधिन्यै नमः मंत्र का उच्चारण कर दाएं नासाछिद्र का, ॐ विप्र चित्तायै नमः मंत्र से बाएं नासाछिद्र क, ॐ उग्रायै नमः मंत्र से दाएं नेत्र का, ॐ उग्र प्रभायै नमः मंत्र से बाएं नेत्र का, ॐ दिप्तायै नमः मंत्र से दाएं कान का, ॐ नीलायै नमः मंत्र से बाएं कान का, ॐ धनायै नमः मंत्र से नाभि का, ॐ बलाकायै नमः मंत्र से वक्ष का, ॐ मात्रायै नमः मंत्र से मस्तक का, ॐ मुद्रायै नमः मंत्र से दाएं स्कंध का ॐ मिलायै नमः मंत्र से बाएं कंधे का स्पर्श करे ।
विनियोग
ॐ अस्य मंत्रस्य भैरव ऋषिरुष्णिक्छन्दो दक्षिणकालिका देवता ह्नीं बीजं हूं शक्ति, क्रीं कीलकं पुरुषार्थं चतुष्टय सिद्धयर्थे विनियोग: ।
ऋष्यादिन्यास
शिरसि भैरव ऋषये नमः । मुखे उष्णिक्छन्द्से नमः । ह्रदि दक्षिण कालिकायै देवतायै नमः । गुह्ये ह्नीं बीजाय नमः । पादयो हूं शक्तये नमः । सर्वाङ्ने क्रीं कीलकाय नमः ।
कराङ्नन्यास
ॐ ह्नां अङ्नष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्नीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां वषट् । ॐ ह्नैं अनामिकाभ्यां हुम् । ॐ ह्नीं कनिष्ठकाभ्यां वौषट । ॐ ह्नः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
षडङ्गन्यास
ॐ ह्नां, ह्रदयाय नमः । ॐ ह्नीं शिरसे स्वाहा । ॐ ह्नूं शिखायै वषट् । ॐ ह्नैं कवचाय हुम् । ॐ ह्नौ नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ह्नः अस्त्राय फट् ।
वर्णन्यास
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं लृं लृं नमः (इति हृदये)।
एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं नमः (इति दक्षिण बाहौ) ।
ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं नमः (इति वाम बाहौ) ।
णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमः (इति दक्षिण पादे) ।
मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं नमः (इति वाम पादे) ।
षोढान्यास
ॐ अं ॐ नंम (ललाट में), ॐ आं ॐ नमः (मुख में), अं ॐ अं नमः । (ललाट में), आं ॐ आं नमः (मुख में) ।
तत्त्वन्यास
दिए गए मंत्र को तीन भागों में बांटकर (प्रथम भाग में ७, द्वितीय भाग में ६ तथा तृतीय भाग में ९ अक्षर रखे) । इन्हीं से न्यास करे ।
प्रथम भागांत में ॐ आत्मतत्त्वाय स्वाहा । द्वितीय भागांत में ॐ विद्या तत्त्वाय स्वाहा । तृतीय भागांत में ॐ शिवतत्त्वाय स्वाहा । कहकर न्यास करे । यथा:
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं ॐ आत्मतत्त्वाय स्वाहा मंत्र बोलकर पैरों से नाभि तक दक्षिणे कालिके ॐ विद्यातत्त्वाय स्वाहा मंत्र बोलकर नाभि से ह्रदय तक न्यास करे । क्रीं क्रीं क्री हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ॐ शिवतत्त्वाय स्वाहा मंत्र बोलकर ह्रदय से शीश तक न्यास करे ।
बीजन्यास
क्रीं नमः। (ब्रह्मरन्ध्र में), क्रीं नमः। भौंहों में), क्रीं नमः। (ललाट में, हूं नमः। (नाभि में), हूं नमः। (गुह्य में), ह्नीं नमः। (मुख में), ह्नीं नमः। (सर्वांग में) ।
ध्यान का स्वरूप
काली के किसी भी स्वरूप का ध्यान कर अर्घ्य स्थापित करे । अर्घ्य स्थापन विधि इस प्रकार है ।