हिंदी सूची|भारतीय शास्त्रे|तंत्र शास्त्र|कालीतंत्र|
महाकाली

कालीतंत्र - महाकाली

तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे.


महाकाली को ही महाकाल पुरुष की शक्ति के रूप में माना जाता है । महाकाल का कोई लक्षण नहीं, वह अज्ञात है, तर्क से परे है । उसी की शक्ति का नाम है महाकाली । सृष्टि के आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभिक अवतरण था । यही कारण है कि आगमशास्त्र में इसे प्रथमा व आद्या आदि नामों से भी संबोधित किया गया है ।

आगमशास्त्र में रात्रि को महाप्रल्य का प्रतीक माना गया है । रात के १२ बजे का समय अत्यंत अंधकारमय होता है । यही कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । सूर्योदय होते ही अंधकार क्रमश: घटता जाता है । अंधकार के उतार-चढाव को देखते हुए इस कालखंड को ऋषि-मुनियों ने कुल ६२ विभागों में विभाजित किया है । इसी प्रकार महाकाली के भी अलग-अलग रूपों के ६२ विभाग हैं । शक्ति के अलग-अलग रूपों की व्याख्या करने के उद्देश्य से ऋषि-मुनियों ने निदान विद्या के आधार पर उनकी मूर्तियां बनाईं ।

समस्त शक्तियों को अचिंत्या कहा गया है । वे अदृश्य और निर्गुण हैं । शक्तियों की मूर्तियों को उनकी काया का स्वरूप मानना चाहिए ।

अचिंत्यस्थाप्रामैयस्य निर्गुणस्य गुणात्मनः ।
उपासकानां सिद्धयर्थ ब्रह्मणों रूपकल्पना ॥


अर्थात शक्तियों के रूप की कल्पना करते हुए काल्पनिक मूर्तियों का इसलिए निर्माण किया गया, ताकि उनकी उपासना की जा सके तथा उनके रूप के दर्शन किए जा सकें ।

निदान शास्त्र में इन मूर्तियों के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है । किंतु खेद है कि आज यह ग्रंथ विलुप्त और अनुपलब्ध है । यही कारण है कि शक्तियों की विलक्षण और विचित्र मूर्तियों की वास्ततिकता पर संदेह प्रकट किया जा रहा है । दश महाविद्याओं के स्वरूपों का संबंध निदान से है ।

यहां निदान का किस अर्थ में उपयोग किया जाता है । वस्तुत: संकेत को ही निदान कहा जाता है । निदान से पता चलता है कि किसका संबंध किससे है । इहलोक हो या परलोक-सर्वत्र यही नियम लागु है । कहीं संकट मंडराता है तो वहां लाल कपडे अथवा लाल तख्ती से संकेत किया जाता है । यानी संकट का निदान लाल कपडे में निहित है । इसी प्रकार काले वस्त्र को शोक का निदान माना है तो श्वेत वस्त्र को यश व सम्मान का निदान । शांति और उत्पादकता का निदा हरा वस्त्र है, विजयश्री का निदान पताका है और अंतरिक्ष का निदान नीला वस्त्र है ।

कई अज्ञानी लोग प्रश्न करते हैं कि शोक का काले वस्त्र से कैसा संबंध ? शोकाकुल व्यक्ति काला वस्त्र पहने या श्वेत वस्त्र, उससे शोक पर कोई असर नहीं पडता । अतएव काले वस्त्र को शोक का निदान मानना तार्किक नहीं है ।

किंतु निदान शास्त्र में इसके पक्ष में अनेक सबल तर्क दिए गए हैं । शोकसंतप्त व्यक्ति का सबसे नाता टूट जाता है, वह स्वयं को भी भूल जाता है । उसे प्रतीत होता है, मानो वह घोर तम (अंधकार) से घिर गया है । उसे रोशनी भली नहीं लगती, अंधेरे बंद कमरे में ही वह रोना-कलपना चाहता है । इसी  करण निदान शास्त्र काले वस्त्र को शोक का प्रतीक मानता है ।

काला वस्त्र रोशनी को अपने अंदर समा लेता है, जबकि श्वेत वस्त्र रोशनी की परावर्तित करता है, सर्वत्र विकीर्ण कर देता है । इसीलिए इसे यश और सम्मान का निदान माना गया है, क्योंकि यशस्वी व्यक्ति की ख्याति सर्वत्र विकीर्ण हो जाती है ।

निदान विद्या का दृढ विश्वास है कि सृष्टि की रचना जल से हुई है । जल से ही पैदा होता है कमल, अतः कमल को पृथ्वी का निदान माना गया है । वर्षा ऋतु में चारों ओर हरियाली छा जाती है । हरियाली से उत्पादन होता है और शांति व्याप्त होती है। अतः हरे वस्त्र को शांति और उत्पादकता का निदान माना गया है ।

इससे सिद्ध होता है कि निदान का अपने समभाव से अटूट संबंध है । शक्ति का प्राकृतिक स्वरूप निराकार और अदृश्य है । किंतु कौन-सी शक्ति किस शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है, उसी के आधार पर उनकी मूर्तियों की भव्य कल्पना की गई है ।

शक्ति की मूर्तियां हम अनेक रूपों में देखते हैं । किसी में उसकी जीभ निकली हुई है तो किसी में उसने गले गले में नरमुंडों की माला धारण कर रखी है । इन मूर्तियों में शक्ति की भुजाओं की संख्या में भी अंतर है और भुजाओं द्वारा पकडे गए अवदानों में भी । किसी में वह दो भुजाओं में नजर आती है तो किसी में कमलपुष्प ।

मूर्तियों में शक्ति का उदार व विनम्र भव्य स्वरूप भी है और विकराला स्वरूप भी । किसी में वह मुर्दे पर आरूढ तो किसी में मदिरा पीते हुए अट्टहास कर रही है । मूर्तियों में उसे दिगंबर और पीतांबर दोनों अवस्थाओं में देखा जा सकता है ।

निस्संदेह प्रत्येक मूर्ति विशिष्ट अर्थ और उद्देश्य का निदान है । किंतु जो लोग इनमें अंतर्निहित भावों से अनभिज्ञ हैं, वे इनको अवज्ञा से देखते हैं और उपहास करते हैं । ये निरर्थक या मनमानी कल्पनाओं का मूर्त रूप नहीं, बल्कि विभिन्न शक्तियों के विभिन्न स्वरूपों का निरूपण है ।

हमारे यहां प्रत्येक देवता की भिन्न शक्ति और भिन्न स्वरूप होता है । ऋषिमुनियों ने निदान के माध्यम देवातों की स्तुति व उपासना करने की विधि बताई है । उनका कहना है कि जिस देवता की स्तुति करना चाहते हो, सर्वप्रथम उसठे स्वरूप का स्मरण का स्मरण करो । यदि महाकाली का उपासक महाकाली की स्तुति करना चाहता है तो सबसे पहले उसे उसके स्वरूप को चित्त में धारण करना चाहिए. जो इस प्रकार है:

महाकाली शव पर आरूढ है । उसका स्वरूप महाभयावह है । उसकी दाढ महाविकराल है । वह विद्रूपता से हंस रही है । उसकी चार भुजाओं में से एक में खडग है, दूसरे में नरमुंड, तीसरे में अभयमुद्रा और चौथे में वर । जीभ बाहर निकली हुई है और गले में मुंडों की माला । व्ह नग्रावस्था में है । उसका निवास स्थान श्मशान है ।

महाशक्ति महाकाली का संबंध प्रलयरात्रि मध्यकाल से है । जब तक मनुष्य शक्तिशाली होता है, वह शिव है । किंतु शक्तिहीन होते ही वह शव में परिवर्तित होता है । उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है ।

विश्व के अस्तित्व में आने से पहले महाकाली का अविर्भाव हो चुका था । वही विश्व की संहारक कालरात्रि है । उसकी प्रतिष्ठा संहार और प्रलय से है, सृष्टि की रचना से नहीं । प्रलय और संहार के समय सारी सृष्टि शव के समान हो गई है और उसके ऊपर महाकाली पांव धरकर खडी हुई है । विश्व मरणशील है, अतः शवस्वरूप है । इसी शवस्वरूप को विश्व का निदान कहा गया है ।

जो संहार करता है, प्रलय लाता है, वह महाप्रचंड होता है । उसकी मुखाकृति अत्यंत वीभत्स होती है । कोई उसकी ओर आंख उठाकर देखने का साहस नहीं जुटा पाता । महाकाली की कुखाकृति अत्यंत प्रचंड होती है. क्योंकि वह नाश और संहार की देवी है । उसकी आंखों में करुणा नहीं, काल होता है । उसके नाशक संहारक स्वरूप का निदान है यह भयोत्पादक मूर्ति ।

महाकाली का अट्टहास विजय का द्योतक है । उसका अट्टहास सुनकर चारों तरफ भय की सृष्टि होती है । सृष्टि उसकी प्रचंडता और भीषणता से त्राहि-त्राहि कर उठती है । यह अट्टहास महाकाली की विजय और भयावहता का निदान है ।

महाकाली की अनेक भुजाएं हैं । किंतु जब वह संहार अभियान पर निकलती है तो केवल चार भुजाओं का उपयोग करती है । वह खड्‌ग से विनाशलीला करती  है । यह खड्‌ग उसकी संहारक शक्ति का निदान है । प्राणियों का संहार करने का निदान नरमुंड है । किंतु विनाशलीला करने वाली महाकाली का एक हाथ अभय मुद्रा में और दूसरा वरभाव में क्यों ?

वस्तुः जिसने भी विनाशकारी महाकाली के रूप को साकार किया था, वह अवश्य कल्पनाशील और रचनाशील था । जिस शक्ति का महाकाली प्रतिनिधित्व करती है, उसके अर्थ, उद्देश्य और भाव से वह निस्संदेह भलीभांति परिचित था. तभी तों मूर्ति को सार्थकता दे सका ।

यह सच है कि महाकाली साक्षात भय और विनाश है । उसका काम केवल प्रलय और विध्वंस है । किंतु वह अभय और वर प्रदायनी है । विश्व मायाशील है, शोक संतप्त है, सुख की कामना से विह्वल है । उसे सबसे अधिक भयभाव सताता है । यदि वह महाकाली की शरण में आए तो अभयपद को प्राप्त हो सकता है । अतः महाकाली की उपासना करने वाला भयहीन और शोकमुक्त हो जाता है ।

प्रलय की बेला में जब प्राणी कालग्रास बनते हैं, तब महाकाली शवों को स्वयं धारण करती है । मरण महासत्य है । महाकाली इस सत्य की वाहक है । अतएव मृतकों को स्वयं पर प्रतिष्ठित कर उनका उद्धार करती है । इसी भाव को प्रकट करती है उसके गले में मुंडमाला ।

संपूर्ण ब्रह्मांड में महाकाली व्याप्त है । वह सृष्टि के चराचर में समाहित है । वह अनावृत है । आकाश, दिगंत और दिशाएं ही उसकी परिधान है । उसकी गग्रावस्था का निदान इसी भाव में है ।

महाकाली अपना विशाल, चरम और परम स्वरूप तब धारण करती है, जब प्रलय का आह्वान करती है । चारों ओर विनाशलीला का घनघोर रौरव व्याप्त हो जाता है । वह संपूर्ण विश्व को श्मशान बनाकर अपने नितांत तमस्वरूप को प्राप्त होती है । तभी तो श्मशान को उसका निवास स्थान बताया गया है । यह श्मशान और कुछ नहीं केवल उसके तमस्वरूप का निदान है । यही वास्तविक महाकाली है ।

निस्संदेह महाकाली के इस स्वरूप को देखकर साधारण जन उसकी उपासना करने की कल्पना से ही कांप उठता है । इस सत्य से ऋषि-मुनि अनभिज्ञ नहीं थे । अतः उन्होंने महाशक्तियों की आंतरिक संरचना ध्यान रखते हुए निदान के माध्यम से उनकी काल्पनिक मूर्तियों का निर्माण किया और उनके प्रत्येक स्वरूप की मीमांसा प्रस्तुत की, ताकि लोग उनके कल्याणकारी पहलू से परिचित हो सकें ।

N/A

References : N/A
Last Updated : December 28, 2013

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP