अथ भैरवी-पूजन
भ्रैरव पूजन के बाद भैरवों के सपीप ही साधक आठ भैरवियों का भी पूजन करे । पूजनारंभ से पूर्व निम्नवत ध्यान करे:
भावयेच्च महादेवी चन्द्रकोटियुत प्रभाम् ।
हिमकुन्देन्दु धवलां पञ्चवक्त्रां त्रिलोचनाम् ॥
अष्टादश भुजैर्युक्तां सर्वानन्द करोद्यताम् ।
प्रहसन्नतीं विशालाक्षीं देवदेवस्य सन्मुखीम् ॥
ध्यानोपरांत निम्नानुसार पूजा करे:
ॐ श्री भैरव्यै नमः ।
(श्री भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ मं महाभैरव्यै नमः ।
(महाभैरवी श्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ सिं सिंह भैरव्यै नमः ।
(सिंह भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ धूं धूम्र भैरव्यै नमः ।
(धूम्रभैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ भीं भीम भैरव्यै नमः ।
(भीम भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै नमः ।
(उत्मत्त भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ वं वशीकरण भैरव्यै नमः ।
(वशीकरण भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
ॐ मों मोहन भैरव्यै नमः ।
(मोहन भैरवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः) ।
भैरवी पूजन के पश्चात भूपुर से बाहर इन्द्र आदि दश दिक्पालों तथा वज्र आदि आयुधों का पद्धति-मार्गानुसार पूजन करे । ततश्च धूपदान से नमस्कार तक पूजा सम्पन्न करने के पश्चात मंत्र का जप करे ।
मंत्र सिद्धि व फल प्राप्ति
साधक पूजनोपरान्त मंत्र का एक लाख जप करे । जपोरांत कनेर के पुष्पों से दशांश आहुतियां देकर हवन करे । उक्त विधि से पूजा करने पर मां काली साधकों को सिद्धि प्रदान करती है ।
जो साधक स्वयं के लिए अथवा दुसरों के लिए लक्ष्मी अथवा प्रसिद्धि हेतु सुन्दरी-स्त्री के मदनावास (गुप्तांग) को देखता हुआ उक्त मंत्र का १०,००० बार जप करता है, वह बृहस्पति के समान हो जाता है ।
जो जाधक नग्न होकर, बालों को खुला रखकर, श्मशान में अर्द्धरात्रि के समय १०,००० बार मंत्र जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं ।
जो साधक श्मशान में शव के ह्र्दय पर नग्न बैठकर, अपने वीर्य से युक्त एक सहस्त्र मदार-पुष्पों से भक्तिपूर्वक जप करता हुआ एक-एक पुष्पसे देवी की पूजा करता है, वह पृथ्वीपति होता है ।
जो साधक रजः स्त्राव करती हुई नारी-भग का ध्यान करता हुआ १०,००० की संख्या में मंत्र का जप करता है, वह सुन्दर कवित्व-शक्तित से संसार को मोहित कर लेता है ।
जो साधक शव के ह्रदयक पर, आठ आरे वाले महापीठ पर स्थित शिवजी के साथ मदन-संग्राम (सहवास) करती हुई तथा मुस्कराती हुई देवी का ध्यान करते हुए रमण-क्रिया (सहवास) में प्रवृत्त रहते हुए १,००० मंत्र का जप करता है, वह शिव समान हो जाता है ।
जो साधक हविष्यान्न सेवन करता हुआ दिन में देवी का ध्यान कर जप करता है । वह विद्या, लक्ष्मी, यश तथा पुत्रों से युक्त होकर चिरकाल तक सुखी बना रहाता है ।
जो साधक रात्रि के समय मैथुनरत होकर इस मंत्र का एक लाक जप करता है, वह राज या राजातुल्य होता है ।
जो साधक रक्तिम कमल पुष्पों से होम करते हुए इस मंत्र का एक लाख बार जप करता है वह कुबेर को भी जीत लेता है । जो बेल के पत्तोंसे हवन करते हुए जप करता है, वह राज्य पाता है । जो लाला पुष्पों से हवन करते हुए जप करता है, उसे वशीकरण का लाभ होता है । जो भैंसे आदि पशुओं के रक्त से काली का तर्पण कर जप करता है, उसे सभी सिद्धियां मिलती हैं ।
जो मंत्रवेत्ता शव के ऊपर बैठकर एक लाख जप करता है, उसका मंत्र शीघ्र सिद्ध हो जाता है तथा समस्त अभीष्ट फल प्राप्त होते हैं ।
जो व्यक्ति भगवती कालिका की उपासना करता है, उसके सम्बन्ध में यह समझना चाहिए कि उस साधक ने अश्वमेधादि यज्ञों को पूर्ण कर लिया है, दान दिया है तथा तपस्या की है । जो मनुष्य सदैव काली की पूजा करता है उसको ब्रह्मा, विष्णु शिव, गौरी, लक्ष्मी, गणपति, सूर्य आदि सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है ।