काया तुजे घडिये न राखे कोई तुजे पलख न राखे कोई ॥ध्रु०॥
जबलग तेल दिवामें बत्ती तबलग सुजे संसार ।
जल गया तेल बुज गई बत्ती मंदिर हुवा अंधार ॥१॥
घर भीतर तेरी जोरूरे जुरे गलिया जुले तेरी माई ।
पडे पडे मुख बास न होई तो कुककाड नव होईरे ॥२॥
कौनसे आई कौनसे आई कौन बहिण भोजाई ।
पंथ चले पांच बांधव रोये तो हंस अकेला होई रे ॥३॥
उड गया हंस गगन जाई बैठा ।
सब संसार न कहता कहे कबीर सुनो भाई साधु दिनानाथ करे सो होईरे ॥४॥