सुनो प्यारे हरीरे भगत । पंढरपुरमें ज्याके देखो सुरत ॥ध्रु०॥
भीमा किनारे बिटपर नीट कटपर रखे कर जिन्ने ।
वोही हमारा पीर पैगंबर हारा सुख भया दरुशनमें ॥१॥
तीरथ बरतकी न धरो आस उनका मनमोंही ध्यास ।
अब कांहा जंगलका सोस भयो उदास दिलमों ॥२॥
कहत कबीरा सुनो भाई साधु येही हमारा भेष ।
एकही हमारा वोही अल्ला हम तो भयो निर्दोष ॥३॥