सब आलमका रखनेवाला बिठ्ठल पंढरपुरवाला ।
फकीर उनोके खूप बिराजे सब संतनका हुवा मेला ॥ध्रु०॥
रामनाम बिन कछु नहीं जाने मारूं जमकू टोला ।
मन तुरंगपर स्वार होकर करो उनोपर हल्ला ॥१॥
कटार सीका सिंघासन छोडा गोपीचंद मुद्रा माला ।
ब्रह्मा ब्रिंद जमकू न जाने ज्यानो लक्ष्मीवाला ॥२॥
महेल खजाना कछु नहीं चाहत नही घोडा हाती सुत पाला ।
घर घर जागे धरतरी माई तीनों लोकमों उजाला ॥३॥
निशान झेंडा दीये डेरे चंदरभागामों हुवा मेला ।
आखाडीं एकादशीसे कबीर भगत हुवा चेला ॥४॥