सारिपुत्र उपतिश्य (सारिपुत्त) n. गौतम बुद्ध का एक प्रमुख शिष्य । यह उपतिश्य ग्राम का रहनेवाला था, जिस कारण इसे यह उपाधि प्राप्त हुई थी । यह ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुआ था, एवं इसके मातापितरों के नाम क्रमशः रुपसारि एवं वगन्त थे । इसकी माता के नाम के कारण ही इसे सारीपुत्त नाम प्राप्त हुआ था । संस्कृत साहित्य में इसका निर्देश ‘ शालिपुत्र, ’ ‘ शारिसुत ’ एवं ‘ शारद्वतीपुत्र ’ नाम से भी प्राप्त हैं । इसके चण्ड, उपसेन एवं रेवत नामक तीन भाई थे, जो सारे बौद्ध धर्म के उपासक थे । बुद्ध का शिष्य होने के पहले इसने संजय नामक गुरु के पास विद्या प्राप्त की थी । गौतम बुद्ध ने इसे राजगृह में ‘ वेदान्तपरिग्रहसूत्र ’ का उपदेश दिया था, एवं यह अर्हत बन गया । पश्चात् यह बुद्ध का सर्वश्रेष्ठ शिष्य बन गया, एवं स्वयं बुद्ध ने इसके ज्ञान एवं साधना के संबंध में प्रशंसा की थी
[अंगुत्तर. १.२३] । इसी कारण इसे ‘ धम्मसेनापति ’ उपाधि प्राप्त हुई । बौद्धधर्म संघ का व्यवस्थापन का कार्य इस पर ही निर्भर था । इस प्रकार देवदत्त जब स्वतंत्र धर्मसांप्रदाय की स्थापना करनेवाला था, उस समय मध्यस्थता के लिए बुद्ध ने इसे भेजा था । इसकी मृत्यु बुद्ध के निर्वाण के पूर्व ही नालग्रामक नामक गाँव में हुई थी । इसकी मृत्यु से बुद्ध को अत्यधिक दुःख हुआ, किंतु मृत्यु की नित्यता ध्यान में ला कर बुद्ध ने अपना मन काबू में लाया ।