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गौतम n. एक ऋषि । अरुण, आग्निवेश्य उद्दालक आरुणि, कुश्रि, मेधातिथि, सति तथा हारिद्रुमत, का यह पैतृक नाम है । प्राचीनयोग्य, शांडिल्य, आनभिम्लात, गार्ग्य, भारद्वाज, वात्स्य, मांटि, सैतव आदि गौतम के शिष्य थे । यह दीर्घतमस् का पुत्र था । इसकी माता का नाम प्रद्वेषी [म.आ.९८.१७,१०३७] ;[म.स. ४.१५, ११.१५] । इसके पिता आंगिरसकुल के थे [म. अनु. १५४.९] । वह बृहस्पति के शाप के कारण जन्मांध हुआ था [ऋ. १.१४७] ;[म.आ.९८.१५] । कुछ स्थानों पर, दीर्घतमस् ने ही गौतम नाम धारण किया, ऐसा प्रतीत होता है [बृहद्दे. ३.१२३] ;[म. शां. ३४३] ;[मत्स्य. ४८.५३-८४] । गौतम नाम से गौतम के पशुतुल्य वर्तन का बोध होता है [वायु.९९.४७-६१, ८८-९२] ;[ब्रह्मांड. ३.७४. ४७-६१,९०-९४] ;[मस्त्य. ४८. ४३-५६, ७९-८४] । गौतम को औशीनरी नामक शूद्र स्त्री से कक्षीवत् आदि पुत्र हुए (दीर्घतमस् देखिये) । गौतम वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक था । ब्रह्मदेव की मानसकन्या अहल्या इसकी स्त्री थी (अहल्या देखिये) । जनक का पुरोहित शतानंद इसका पुत्र था [म. व. १८५] । इसका अंगिरस् से नदीमाहात्म्य के संबंध में संभाषण हुआ था [म. अनु.२५] । इसके नाम से गोदावरी का नाम गौतमी हुआ [दे. भा. ११.९] । अन्न का अकाल पडने के कारण, वृषादर्भि राजा दान कर रहा था । जिन सप्तर्षियो ने उसे दान लेना अमान्य कर दिया, उनमें से एक गौतम था [म.अनु.९३] । गौतम को उत्तंक नामक एक शिष्य था । उसे गौतम ने अपनी कन्या दी थी । उत्तंक ने सौदास राजा के पास से कुंडल ला कर, गुरुपत्नी को गुरुदक्षिणा में दी [म.आश्व. ५५-५६] । गौतम का आश्रम पारियात्र पर्वत के पास था । इसने वहॉं साठ हजार वर्षो तक तप किया । तब स्वयं यम वहॉं आया । उस समय गौतम ने उससे पूछा, ‘पितरों का ऋण किस प्रकार चुकाया जावे’। यम ने कहा, ‘सत्य, घर्म, तप तथा शुचिर्भूतता का अवलंब कर के मातापितरों का पूजन करना चाहिये । इससे स्वर्गादि की प्राप्ति होती है’ [म.शां.१२७] । बारह वर्षो तक अकाल पडा । इसने भोजन दे कर ऋषियों को बचाया [नारद.२.७३] । यही वर्णन दे कर, शक्तिउपासना का महत्त्व बताया गया है [दे. भा.१२.९] ;[शिव कोटि. २५-२७] । गौतम तथा भगीरथ ने तप कर के शंकर को प्रसन्न किया तथा गंगा मॉंगी । शंकर ने गौतम को गंगा दी । वही गौतमी के नाम से प्रसिद्ध हुई [पद्म. उ. २६८. ५२-५४] । गौतमी-(गोदावरी) माहात्म्य विस्तृत रुप में उपलब्ध है [ब्रह्म. ७०-१७५] । न्यायशास्त्र लिखने वाले गौतम का निर्देश प्राप्त है [शिव. उमा.२.४३-४७] । यह अंगिराकुल का एक ऋषि तथा प्रवर है । त्र्यंबकेश्वर का अवतार इसी के लिये हुआ था [शिव. शत. ४३] । वही ज्योतिलिंग नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर नाम से प्रसिद्ध है । गौतम n. यह व्यास सामशिष्य परंपरा का हिरण्यनाभ का शिष्य है (व्यास देखिये) । वायु तथा ब्रह्मांड के मतानुसार यह सामवेद की राणायनि शाखा के नौ उपशाखाओं में से एक शाखा का आचार्य है [द्रा. श्रौ. १.४.१७] । गौतम का चार्य रुप में उल्लेख है [ला. श्रौ. १.३.३,४.१७] । उसी प्रकार सामवेद के गोभिल गृह्यसूत्र में भी गौतम का उल्लेख अनेक बार आया है । गौतम n. गौतमस्मृति यह ग्रंथ गद्यमय है । उसमें ग्रंथकर्ता द्वारा किया हुआ अथवा बाहर से लिया गया एक भी पद्म श्लोक नहीं है । इस ग्रंथ के कुल अठ्ठाईस विभाग किये गये है । कलकत्ता प्रत में, एक विभाग अधिक है । परंतु हरदत्तद्वारा रचित मिताक्षरा में इस विभाग का बिल्कुल उल्लेख नही है । इससे प्रतीत होता है कि, यह भाग प्रक्षिप्त होगा । वेंकटेश्वरआवृत्ति कलकत्ताआवृत्ति से ली गई है । गौतम n. गौतमधर्मसूत्र में चातुर्वर्णियों के व्यवहार के नियम, उपनयनायादि संस्कार, विवाह तथा उसके प्रकार, प्रायश्चित, राजधर्म, राजधर्म, स्त्रियों के कर्तव्य, नियोग, महापातके तथा उपपातकों के लिये प्रायश्चित, कृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, आदि प्रकारों का विचार किया गया है । गौतमधर्मसूत्र में संहिता, ब्राह्मण, पुराण, वेदांग आदि के काफी उल्लेख आये है । गौतम ने तैत्तिरीय आरण्यक के पच्चीस उद्धरण तथा कई मत अपने ग्रंथ में लिये है । गौतमधर्मसूत्र का उल्लेख सर्वप्रथम बौधायनधर्मसूत्र में प्राप्त है । उसी प्रकर वसिष्ठधर्मशास्त्र, अपरार्क, तंत्रवार्तिक, वेदांतो पर लिखा गया शांकरभाष्य आदि ग्रंथो में भी गौतमधर्मसूत्र काफी उद्धरण लिये गये है । मनुस्मृति में गौतम का उतथ्यपुत्र के नाम से उल्लेख है [मनु.३.१६] । भविष्यपुराण में भी, गौतम का सुरापानानिषेष के बारे में उल्लेख है । गौतमधर्मासूत्र का उल्लेख बौधायन, वसिष्ठ आदि धर्मशास्त्रकारों ने किया है । इससे प्रतीत होता है कि, यह वसिष्ठ तथा बौधायन के पूर्व का होगा । यवनों का उल्लेख भी आया है । यवन शब्द का अर्थ स्वयं गौतम ने दिया है, ‘ब्राह्मण को शूद्रा से उत्पन्न संतति’। इसी अर्थ से यह शब्द गौतमधर्मसूत्र में आया हैं [गौ. ध. ४.१७] । इससे प्रतीत होता है कि, ब्राह्मण तथा शूद्र के मिश्रण से बनी यवनजाति भारत में ग्रीकों के आने के पहले भी थी । उसपर गौतम का काल निश्चित करना असंभव है । गौतमधर्मसूत्र पर हरदत्त ने मिताक्षरा नामक टीका तथा मस्करी तथा असाहाय ने भाष्य भी लिखे है । मिताक्षरा, स्मृतिचन्द्रिका आदि ग्रंथो में, श्लोगौतम, अपरार्क एवं दत्तकमीमासां में वृद्धगौतम तथा बृहद्गौतम इन ग्रंथों का उल्लेख है । उसी प्रकार जीवानंद ने १७०० श्लोको की गौतमस्मृति छपवायीं है । यह स्मृति कृष्ण ने युधिष्ठिर को, चातुर्वण्य के धर्मकथन करने के लिये बताई, ऐसा उस स्मृति में उल्लेख है । परंतु वह स्मृति महाभारत के आश्वामेधिकपर्व से ली गई होगी । क्योंकि, पराशरमाधवीय में तथा अन्य कई ग्रंथों में, इस स्मृति के श्लोक आश्वमेधिकपर्व से लिये गये है । आह्रिकसूत्र, पितृमेधसूत्र तथा दानचंद्रिका के अतिरिक्त न्यायसूत्र, गौतमीशिक्षा आदि गौतम के ग्रंथ है । गौतम II. n. एकत, द्वित तथा त्रित का पिता [म.श.३५.९] ; त्रित देखिये । है । गौतम III. n. इसे चिरकारिन् नामक पुत्र था । इसने उसे पापकर्मी माता का वध करने के लिये कहा । परंतु चिरकारिन् के दीर्घसूत्री आचरण के कारण, वह काम नही हो सका [म.शां२५८. ७-८] । गौतम IV. n. पूषन् नामक सूर्य के साथ घूमनेवाला एक ऋषि [भा. १२. ११.३९] । गौतम V. n. मध्यदेश में रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसे बिल्कुल वेदज्ञान नहीं था । एक गांव में, एक अमीर शूद्र के पास यह गया । उसने इसे एक विधवा स्त्री दी। उसके सात यह कालक्रमणा कर रहा था । इसका एक मित्र इसके पास आया तथा उसने इसे दुराचरण से परावृत्त किया । गौतम वहॉं से निकला । राह में यह नाडिजंघ नामक कश्यपपुत्र के पास आया । वह राजधर्मन् के नाम से प्रसिद्ध था । गौतम का यथोचित सत्कार कर के, अपने राजा विरुपाक्ष के पास, वह इसे ले गया । राजा के द्वारा पूछे जाने पर इसने सब हकीकत बताई । राजा के घर इसे ब्राह्मणोंसह उत्तम भोजन तथा अच्छी दक्षिणा मिली, संपत्ति का भार सिर पर ले कर यह एक वटवृक्ष के नीचे बैठा । वहॉं बैठे बैठे, राजधर्मन् का वध करने का विचार इसके मन में आया । इस विचार के अनुसार, वध कर के, उसे जला कर उसकी संपत्ति ले कर यह खाना हुआ । परंतु जल्द ही विरुपाक्ष ने इसे राक्षसोंद्वारा पकड लाया तथा इसके टुकडे टुकडे करके शबरों को खाने के लिये दिये । यह कृतघ्न होने के कारण, किसी शबर नें इसे नहीं खाया । बाद में राजधर्मन् जीवित होने के बाद, उसने गौतम को जीवित किया, तथा द्रव्य दे कर घर पहुँचाया । गौतम ने शूद्र स्त्री के द्वारा, पापकर्म करनेवाले अनेक पुत्र निर्माण किये । तब देवताओं ने इसे शाप दिया, ‘यह दुष्ट विधवा स्त्री के द्वारा प्रजोत्पादन कर के नरक में जावेगा’ [म.शां१६२-१६७] । गौतम VI. n. अत्रिकुल का एक ब्रह्मर्षि । वैन्य ऋषि को विधाता कहने पर इसने अत्रि से स्पष्टीकरण मॉंगा था [म.व.१८३] । सत्यवत् जीवित है, ऐसा बता कर इसने द्युमत्सेन को धीरज बँधाया था [म.व. २८२-१३] । गौतम VII. n. ब्रह्मदेव ने यज्ञ के लिये, इस नामका ऋत्विज निर्माण कर के, गया में यज्ञ किया [वायु. १०६.३८] । गौतम VIII. n. दारुक नामक शिवावतार का शिष्य (नोधस् वामदेव देखिये) ।
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