रघुपति राघव राजाराम, पतित-पावन सीताराम ।
सीताराम सीताराम, भज मन प्यारे सीताराम ॥१॥
भीड़ पड़ी भक्तोंने पुकारा कष्ट हरा प्रभु आप हमारा ।
तब दशरथ घर प्रगटे राम, पतित-पावन सीताराम ॥२॥
ताड़क वनमें ताड़का मारी, गौतम नारि अहिल्या तारी ।
सब ऋषियोंके पूरणकाम, पतित- पावन सीताराम ॥३॥
जनकपुरीमें शिव-धनु तोरी, सीताराम विवाह भयो री ।
कैसी सुन्दर जोरी राम, पतित-पावन सीताराम ॥४॥
राजतिलककी देख तैयारी, कैकयीने तब बात बिगाड़ी ।
चौदह वर्ष गये वन राम , पतित-पावन सीताराम ॥५॥