श्रीवृन्दावन-धाम अपार रटे जा राधे-राधे ।
भजे जा राधे-राधे ! कहे जा राधे-राधे ॥१॥
वृन्दावन गलियाँ डोले, श्रीराधे-राधे बोले ।
वाको जनम सफल हो जाय, रटे जा राधे-राधे ॥२॥
या ब्रज की रज सुन्दर है, देवनको भी दुर्लभ है ।
मुक्ता रज शीश चढ़ाय, रटे जा राधे-राधे ॥३॥
ये वृन्दावन की लीला, नहीं जाने गुरु या चेला ।
ऋषि-मुनि गये सब हार, रटे जा राधे-राधे ॥४॥
वृन्दावन रास रचायो, शिव गोपी रुप बनायो ।
सब देवन करें विचार, रटे जा राधे-राधे ॥५॥
जो राधे-राधे रटतो, दु:ख जनम-जनम को कटतो ।
तेरो बेड़ो होतो पार, रटे जा राधे-राधे ॥६॥
जो राधे-राधे गावे, सो प्रेम पदारथ पावे ।
भव-सागर होवें पर, रटे जा राधे-राधे ॥७॥
जो राधा नाम न गयो, सो विरथा जन्म गँवायो ।
वाको जीवन है धिक्कार, रटे जा राधे-राधे ॥८॥
जो राधा-जन्म न होतो, रसराज विचारो रोतो ।
होतो न कृष्ण अवतार, रटे जा राधे-राधे ॥९॥
मंदिर की शोभा न्यारी, यामें राजत राजदुलारी ।
डयौढ़ी पर ब्रह्मा राजे, रटे जा राधे-राधे ॥१०॥
जेहि वेद पुराण बखाने, निगमागम पार न पाने ।
खड़े वे राधे के दरबार, रटे जा राधे-राधे ॥११॥
तू माया देख भुलाया, वृथा ही जनम गँवाया ।
फिर भटकैगो संसार, रटे जा राधे-राधे ॥१२॥