रे मन-प्रति-स्वाँस पुकार यही, जय राम हरे ! घनश्याम हरे !
तन-नौकाकी पतवार यही, जय राम हरे घनश्याम हरे ॥१॥
जगमें व्यापक आधर यही, जगमें लेता अवतार वही ।
है निराकार-साकर यही, जय राम हरे घनश्याम हरे ॥२॥
ध्रुवको ध्रुव-पद दातार यही, प्रह्लाद गलेका हार यही ।
नारद-वीणाका तार यही, जय राम हरे घनश्याम हरे ॥३॥
सब सुकृतोंका आगार यही, गंगा-यमुनाकी धार यही ।
श्रीरामेश्वर हरिद्वार यही, जय राम हरे घनश्याम हरे ॥४॥
सज्जनका साहूकार यही प्रेमी-जनका व्यापार यही ।
सुख ’विन्दु’ सुधाका सार यही, जय राम हरे घनश्याम हरे ॥५॥