हरी नाम सुमर सुखधाम, जगत में जिवना दो दिन का
सुन्दर काया देख लुभाया, गरब करै तन का ॥टेर॥
गिर गई देह बिखर गई काया, ज्यूँ माला मनका ॥१॥
सुन्दर नारी लगै पियारी, मौज करै मनका ।
काल बली का लाग्या तमंचा, भूल जाय ठन का ॥२॥
झूठ कपट कर माया जोड़ी, गरब करै धन का ।
सब ही छोड़कर चल्या मुसाफिर बास हुआ बन का ॥३॥
यो संसार स्वप्न की माया, मेला पल छिन का ।
ब्रह्मानन्द भजन कर बन्दे, नाथ निरंजन का ॥४॥