वैधव्यहर कर्कटीव्रत
( व्रतराज ) - सूर्यनारायणके कर्कराशिमें प्रवेश होनेपर कन्याको चाहिये कि वह स्त्रान करके शुद्ध हो अन्न - पूर्ण बाँसके पात्र या अक्षतोंके अष्टदलपर स्वर्णनिर्मित कर्कटी ( ककड़ी ) को स्थापित कर उसका गन्ध, पुष्प आदिसे पूजन करे और विधिवत व्रत करके ग्यारह फल ( ऋतुकालकी ककड़ी ) सहित स्वर्ण - कर्कटीका दान करके ब्राह्मणोंको भोजन कराये तो इससे वैधव्ययोगकी शान्ति होती है । उक्त तीनों व्रतोंके अतिरिक्त मार्कण्डेयपुराणमें ' कुम्भविवाह ', ' अश्वत्थविवाह ', और ' विष्णुविवाह ' - ये तीन परिहार और लिखे हैं । तत्त्वदर्शी महर्षियोंके निश्चित किये हुए होनेसे प्रसङ्गवश यहाँ उनका दिग्दर्शन करा देना आवश्यक है