लक्षपूजाव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


लक्षपूजाव्रत

( ब्रह्माण्डपुराण ) - किसी महीनेकी कृष्ण चतुर्दशीको प्रातः स्त्रानादिके पश्चात् रात्रिके आरम्भमें पुनः स्त्रान करके यथोचित गुणोंसे युक्त और वर्जित २ दोषोंसे विमुक्त विद्वानका वरण कर स्त्री और पुत्रसहित पूजाका आरम्भ करे । उसके लिये मालती, केतकी, चमेली, टेसू ( पलास - कुसुम ), पाटल ( गुलाब ) और कदम्ब आदिके जितने पुष्प मिल सकें लाकर सुविधाके स्थानमें रख दे तथा विविध प्रकारके अन्न और अखण्डित अक्षत ( चावल ) लेकर साम्ब शिवका विधिवत् पूजन करे एवं ' ॐ नमः शिवाय ' के उच्चारणके साथ एक - एक पुष्प उनके अर्पण करे । उसमें दस - दस हजारकी दस आवृत्तियाँ करके प्रत्येक आवृत्तिके पश्चात् स्वर्णपुष्प अर्पण करे । इस प्रकार एक ही दिनमें या दो दिनमें अथवा तीन दिनमें या जिस प्रकार पुष्प प्राप्त हों, उतने दिनमें लक्ष पुष्प अर्पण करके समाप्तिमें सुवर्णका बिल्वपत्र शिवके और सोनेका एक पुष्प शिवाके अर्पण करे । इसके पीछे ' विरुपाक्ष महेशान विश्वरुप महेश्वर । मया कृतां लक्षपूजां गृहीत्वा वरदो भव ॥' से प्रार्थना करके ' मृत्युञ्जयाय यज्ञाय देवदेवाय शम्भवे । आश्विनेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमः ॥' से नमस्कार करे । इसके करनेसे गोहत्या, ब्रह्महत्या, गुरु - स्त्रीगमन, मद्यपान और परधनका अपहरण आदि पापोंका नाश होता है और मनुष्य सब प्रकारसे सुखी रहता है । इसके उद्यापनमें यह विशेषता है कि हवनमें विष्णुसहस्त्रनामसे आहुति दे और दशांश हवन करके पूजनको समाप्त करे ।

धर्मज्ञं दोषरहितं संतुष्टं परिपूज्य च ।

आचार्यं वरयेत् प्राज्ञः सुस्त्रातो भूषितो व्रती ॥ ( ईश्वर )

देवतानभिसक्तं च बधिरं ..........॥

वेदहीनं दुराचारं मलिनं बहुभाषिणम् ।

निन्दकं पिशुनं दुष्टमन्धकं च विवर्जयेत् ॥ ( ईश्वर )

N/A

References : N/A
Last Updated : January 16, 2012

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP