अश्वत्थोपनयनव्रत
( शौनक ) - वृक्षारोपणके शुभ दिवसमें पुरुष जातिके पीपलका रोपण करे । उसको आठ वर्षपर्यन्त जल आदि पोषणोंसे दीर्घजीवी बनावे । फिर ज्यौतिषशास्त्रोक्त उत्तम मुहूर्तमें अश्वत्थका उपनयन ( यज्ञोपवीत - संस्कार ) करे । उसके लिये वेदपाठी ब्राह्मणोंका वरण करके गणपतिपूजन, मातृकापूजन, नान्दीश्राद्ध और पुण्याहवाचन करके गायन, वादन तथा नृत्यके साथ - साथ स्त्रीसमाज और बन्धु - बान्धवोंसहित अभीष्ट पीपलके ईशान कोणमें बैठकर पुण्याहवाचन करे । पीपलको पञ्चामृत ( दूध, दही, घी, खाँड और शहद ) से स्त्रान कराये । धोती और अँगोछा धारण कराये । उसके पीछे मूँजकी मेखलासे अश्वत्थको तीन बार लपेटे और ' यज्ञोपवीतं०' से यज्ञोपवीत धारण कराकर दण्ड और कृष्णाजिन उसके समीप रखे । फिर उससे पश्चिममें उपस्थित होकर गन्ध - पुष्पादिसे उसका पूजन करे और उससे पूर्वमें अपनी पद्धतिके विधानसे हवन करे । इसमें ' इन्द्राय ', ' अग्नये ', ' सोमाय ', ' प्रजापतये ', आदिके अनन्तर ' अश्वत्थेवो० ', ' ॐ या ओषधी० ' और ' वनस्पतये० ' - इन मन्त्नोसे तीन - तीन आहुतियाँ और दे । फिर अश्वत्थसे पश्चिममें पूर्वाभिमुख बैठकर दाहिने हाथसे अश्वत्थको स्पर्श करके उसको तीन बार गायत्रीमन्त्न श्रवण करावे । पीछे हवनको समाप्त कर सवत्सा गौ, अन्न और पूजन - सामग्री आदिका दान करे एवं ब्राह्मणोंको भोजन कराकर स्वयं भोजन करे तो लक्ष्मीकी प्राप्ति और कुलका उद्धार होता है ।