मेधावर्द्धक ग्रहणव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


मेधावर्द्धक ग्रहणव्रत

( प्रयोगवैभव ) - दिनके पूर्वभागमें होनेवाले ग्रहणके पहले दिन प्रातःस्त्रान आदि करनेके अनन्तर सदवैद्यकी सम्मतिके अनुसार ब्राह्मीका सेवन करके व्रत करे । उसके दूसरे दिन ग्रहणके समय सोनेकी शलाका या कुशाके मूल अथवा दूर्वाके अङ्कुरोंसे जीभपर छोटी मखियोंके शहदसे ' ऐ ' लिखे और इसीका जप करे । तदन्तर अग्निस्थापन करके गायके घीकी ८, २८, या १०८ आहुतियाँ देकर गायके दूधकी खीरमें हवनसे बचा हुआ घी मिला दे और ' ॐ प्राणाय स्वाहा ' ' ॐ अपानाय स्वाहा ' ' ॐ व्यानाय स्वाहा ' ' ॐ उदानाय स्वाहा ' और ' ॐ समानाय स्वाहा ' - इन पाँच मन्त्नोसे एक - एक करके पाँच प्राणाहुतियाँ देकर ( अर्थात पाँच ग्रास भक्षण करके ) व्रत करे तो इससे छोटी अवस्थाके छात्रोंकी बुद्धि विकसित होती है और उनका शास्त्रज्ञान बढ़ता है ।

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Last Updated : January 16, 2012

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