वैधव्यहर अश्वत्थव्रत
( ज्ञानभास्कर ) - जिस कन्याके बलवान् वैधव्य - योग हो, उसके माता - पिता उससे अश्वत्थव्रत करायें । कन्याको चाहिये कि वह ज्यौतिषशास्त्रोक्त श्रेष्ठ मुहूर्तमें स्त्रान करके रंग - बिरंगे वस्त्र धारण कर पिताके घरसे बाहर पीपल ( और वह न हो तो शमी या बेरके वृक्ष ) के समीप जाकर चारों ओरकी मिट्टीसे उसके थाल्हा बनाये और विद्वान् ब्राह्मणको आचार्य बनाकर
' मम प्रबलवैधव्यदोषनिरसनपूर्वकं पतिपुत्रादिभिः सह सुखप्राप्तिकामनया अश्वत्थव्रतमहं करिष्ये ।' -
यह संकल्प करके जलपूर्ण करवे ( मिट्टीके पात्र ) से उस थाल्हेको जलसे भरकर पीपलको प्रतिदिन सींचे । विशेषकर चैत्र कृष्ण या आश्विन कृष्ण तृतीयाको अश्वत्थके समीप बैठकर उपर्युक्त प्रकारसे संकल्प करके उसका सेचन, पूजन और व्रत करे । इस प्रकार आगामी कृष्ण तृतीयापर्यन्त प्रतिदिन करके ३१ वें दिन सपत्नीक ब्राह्मणोंका पूजन करे और बाँसके पात्रमें सुवर्णनिर्मित शिव - पार्वतीको स्थापित करके चन्दन, अक्षत, दूर्वा, बिल्वपत्र, पुष्प और धूप - दीप आदिसे विधिपूर्वक पूजन करे । इस प्रकार एक महीनेतक प्रतिदिन करनेसे कन्याको पूर्ण पतिसौख्य प्राप्त होता है ।