सुतप्रद धर्ममूलव्रत
( शुकजातक ) - जन्मलग्न आदिसे बृहस्पतिसे पाँचवें घरका स्वामी त्रिक ( ६, ८, १२ ) में हों और पञ्चम, सप्तम तथा नवमका स्वामी छठे, आठवें और बारहवेंमें हों तो पुत्र - प्राप्तिमे बाधा होती है । अतः उसकी प्राप्तिके निमित्त धर्ममूलक उपाय करने चाहिये । यथा ( १ ) शुक्लपक्षकी सप्तमी, रविवारको प्रातःस्त्रान आदिके बाद ' सत्पुत्रप्राप्तिकामनया सूर्यसप्तमीव्रतमहं करिष्ये ' - यह संकल्प करके सूर्यकी सुवर्णमयी मूर्तिका या आकाशस्थ साक्षात सूर्यका गन्ध, पुष्प आदिसे पूजन कर अलवण एकभुक्त व्रत करे और वर्षपर्यन्त करके उसकी समाप्ति करे । ( २ ) शिवजीके समीप शुभासनपर पूर्वाभिमुख बैठकर उनका करे । ( २ ) शिवजीके समीप शुभासनपर पूर्वाभिमुख बैठकर उनका विधिवत् पूजन करे और पञ्चाक्षरी शिवमन्त्न ( ॐ नमः शिवाय ) का एक लाख या दस हजार जप व्रतपूर्वक नौ मासपर्यन्त करे । ( ३ ) प्रारम्भमें शुक्लपक्षकी दशमी गुरुवारको प्रातः स्त्रान आदि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर ' मम सकलपापतापक्षयपूर्वकं सत्पुत्रप्राप्तिकामनया ' देवकीसुत गोविन्द० ' इति संतानगोपालमन्त्नस्य जपं स्तोत्रपाठं वाहं करिष्ये । ' यह संकल्प करके न्यासादिपूर्वक ' ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥' इस मन्त्नका प्रतिदिन एक या पाँच हजार जप करे और ब्रह्मचर्य - धारणपूर्वक परिमित हविष्यान्नका एकभुक्त भोजन करे । इस प्रकार प्रतिदिन एक हजारके हिसाबसे सौ दिन अथवा पाँच हजार प्रतिदिनके हिसाबसे बीस दिनमें एक लाख जप अथवा सौ दिनमें ग्यारह सौ स्तोत्रपाठ करके समाप्तिके समय तद्दशांशका हवन, तर्पण - मार्जन करे और ब्राह्मण - भोजन करावे । तथा ( ४ ) अपने मकानके आँगनमें मण्डप बनवाकर उसको ध्वजा - पताका और बन्दनवार आदिसे भूषित करके किसी पुराणसाठी सत्पात्र विद्वानसे हरिवंश - पुराणका श्रद्धापूर्वक श्रवण करे और समाप्तिके दिन हवन, पूजन और ब्राह्मण - भोजन आदि कराके उसे समाप्त करे । इस प्रकार इस चारों प्रयोगोंको एक साथ या यथाक्रम पृथक् - पृथक् अथवा इनमेंसे किसी भी एकको करे तो उससे प्रभावशाली पुत्र प्राप्त होता है ।
१. वागीशात् पञ्चमेशस्त्रिकभवनगतः पुत्रधर्माङ्गनाथा रन्ध्रेद्वेष्यन्तिमस्थाः ।
२. तत्प्राप्तिर्धर्ममूला । ( शुकसूत्र )