दीपावली
( व्रतोत्सव ) -
लोकप्रसिद्धिएं प्रज्वलित दीपकोंकी पंक्ति लगा देनेसे ' दीपावली ' और स्थान - स्थानमें मण्डल बना देनेसे ' दीपमालिका ' बनती है, अतः इस रुपमें ये दोनों नाम सार्थक हो जाते हैं । इस प्रकारकी दीपावली या दीपमालिका सम्पन्न करनेसे
' कार्तिके मास्यमावास्या तस्यां दीपप्रदीपनम् । शालायां ब्राह्मणः कुर्यात् स गच्छेत् परमं पदम् ॥'
के अनुसार परमपद प्राप्त होता है । ब्रह्मपुराणमें लिखा है कि ' कार्तिककी अमावास्याको अर्धरात्रिके समय लक्ष्मी महारानी सदगृहास्थोंके मकानोंमे जहाँ - तहाँ विचरण करती हैं । इसलिये अपने मकानोंको सब प्रकारसे स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली अथवा दीपमालिका बनानेसे लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनमें स्थायीरुपसे निवास करती है । इसके सिवा वर्षाकालवे किये हुए दुष्कर्म ( जाले, मकड़ी, धूल - धमासे और दुर्गन्ध आदि ) दूर करनेके हेतुसे भी कार्तिकी अमावास्याको दीपावली लगाना हितकारी होता है । यह अमावास्या प्रदोषकालसे आधी राततक रहनेवाली श्रेष्ठ होती हैं । यदि वह आधी राततक न रहे तो प्रदोषव्यापिनी लेना चाहिये ।