गोवत्सद्वादशी
( मदनरत्नान्तर्गत भविष्योत्तरपुराण ) -
यह व्रत कार्तिक कृष्ण द्वादशीको किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो
' वत्सपूजा वटश्र्चैव कर्तव्यौ प्रथमेऽहनि'
के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिये । उस दिन सायंकालके समय गायें चरकर वापस आयें तब तुल्य वर्णकी गौ और बछड़ेका गन्धादिसे पूजन करके
' क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते । सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'
से उसके ( आगेके ) चरणोंमें अर्घ्य दे और
' सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलङ्कृते । मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरु नन्दिनी ॥'
से प्रार्थना करे । इस बातका स्मरण रखे कि उस दिनके भोजनके पदार्थोमें गायका दूध, दही, घी, छाछ और खीर तथा तेलके पके हुए भूजिया पकौड़ी या अन्य कोई पदार्थ न हों ।