यम - तर्पण
( कृत्यतत्त्वार्णव ) - इसी दिन ( का० कृ० १४ को ) सायंकालके समय दक्षिण दिशाकी ओर मुँह करके जल, तिल और कुश लेकर देवतीर्थसे
' यमाय धर्मराजाय मृत्यवे अनन्ताय वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय औदुम्बराय दध्राय नीलाय परमेष्ठिने वृकोदराय चित्राय और चित्रगुप्ताय ।'
इनमेंसे प्रत्येक नामका ' नमः' सहित उच्चारण करके जल छोड़े । यज्ञोपवीतको कण्ठीकी तरह रखे और काले तथा सफेद दोनों प्रकारके तिलोंको काममें ले । कारण यह है कि यममें धर्मराजके रुपसे देवत्व और यमराजके रुपसे पितृत्व - ये दोनों अंश विद्यमान हैं ।