नरकचतुर्दशी
( लिङ्गपुराण ) -
यह भी इसी दिन होती है । इसके निमित्त चार बत्तियोंके दीपकको प्रज्वलित करके पूर्वाभिमुख होकर
' दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया । चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापनुत्तये ॥'
इसका उच्चारण करके दान करे । इस अवसरमें ( आतिशबाजी आदिकी बनी हुई ) प्रज्वलित उल्का लेकर
' अग्निदग्धाश्च ये जीवा येऽप्यदग्धाः कुले मम । उज्ज्वलज्योतिषा दग्धास्ते यान्तु परमां गतिम् ॥'
से उसका दान करे तो उल्का आदिसे मरे हुए मनुष्योंकी सद्गति हो जाती है ।