मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २३ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २३ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २३ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान २९३ )श्लोक गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु ।हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु ॥१॥पद १ लेसंत संगि अंतरि प्रभु डीठा ।नामु प्रभू का लागा मीठा ॥सगल समिग्री एकसु घट माहि ।अनिक रंग नाना द्रिसटाहि ॥नउनिधि अंम्रितु प्रभ का नामु ।देही महि इस का बिस्रामु ॥सुं न समाधि अनहत तह नाद ।कहनु न जाई अचरज बिसमास ॥तिनि देखिआ जिसु आपि दिखाए ।नानक तिसु जन सोझी पाए ॥१॥पद २ रेसो अंतरि सो बाहरि अनंत ।घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥धरनि माहि आकास पइआल ।सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ।जैसी आगिआ तैसा करमु ॥पउण पाणी बैसंतर माहि ।चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥तिस ते भिंन नहीं को ठाउ ।गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥पद ३ रे बेद पुरान सिंम्रिति महि देखु ।ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥बाणी प्रभ की सभु को बोलै ।आपि अडोलु न कबहू डोलै ॥सरब कला करि खेलै खेल ।मोलि न पाईऐ गुणह अमोल ॥सरब जोति महि जा की जोति ।धारि रहिओ सुआमी ओमि पोति ॥गुर परसादि भरम का नासु ।नानक तिन महि एहु निसासु ॥३॥पद ४ थे संत जना का पेखनु सभु ब्रहम ।संत जना कै हिरदै सभि धरम ॥संत जना सुनहि सुभ बचन ।सरब बिआपी राम सांगि रचन ॥जिनि जाता तिस की हइ रहत ।सति बचन साधू सभि कहत ॥जो जो होइ सोई सुखु मानै ।करन करावनहारु प्रभु जानै ॥अंतरि बसे बाहरि भी ओही ।नानक दरसनु देखि सभ मोही ॥४॥पद ५ वेआपि सति कीआ सभु सति ।तिसु प्रभ ते सगली उतपति ॥तिसु भावै ता करे बिसथारु ।तिसु भावै ता एकंकारु ॥अनिक कला लखी नह जाइ ।जिसु भावै तिसु ले मिलाइ ॥कवन निकटि कवन कहीऐ दूरि ।आपे आपि आप भरपूरि ॥अंतरगति जिसु आपि जनाए ।नानक तिसु जन आपि बुझाए ॥५॥पद ६ वेसरब भूत आपि वरतारा ।सरब नैन आपि पेखनहारा ॥सगल समग्री जा का तना ।आपन जसु आप ही सुना ॥आवन जानु इकु खेलु बनाइआ ।आगिआकारी कीनी माइआ ॥सभ कै मधि अलिपतो रहै ।जो किछु कहणा सु आपे कहै ॥आगिआ आवै आगिआ जाइ ।नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥पद ७ वेइस ते होइ सु नाही बुरा ।ओरै कहहु किनै कछु करा ॥आपि भला करतूति अति नीकी ।आपे जानै अपने जी की ॥आपि साचु धारी सभ साचु ।ओति पोति आपन संगि राचु ॥ता की गति मिति कही न जाइ ।दूसर होइ त सोझी पाइ ॥तिस का कीआ सभु परवानु ।गुर प्रसादि नानक इहु जानु ॥७॥पद ८ वेजो जानै तिसु सदा सुखु होइ ।आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु ।जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु ॥धं नु धं नु जनु आइआ ।जिसु प्रसादि सभु जगत तराइआ ॥जन आवन का इहै सुआउ ।जन कै संगि चिति आवै नाउ ॥आपि मुकतु मुकतु करै संसारु ।नानक तिसु जन कउ सदा नमसकारु ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP