सुखमनी साहिब - अष्टपदी १०

हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.
दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे.


( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र, २७५ )

श्लोक

उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ।
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥

पद १ ले

कई कोटि होए पूजारी ।
कई कोटि आचार बिउहारी ॥
कई कोटि भए तीरथ वासी ।
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥
कई कोटि बेद के स्त्रोते ।
कई कोटि तपीसुर होते ॥
कई कोटि आतम धिआनु धारहि ।
कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ।
नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥

पद २ रे

कई कोटि भए अभिमानी ।
कई कोटि अंध अगिआनी ॥
कई कोटि किरपन कठोर ।
कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ।
कई कोटि पर दूखना करहि ॥
कई कोटि माइआ स्रम माहि ।
कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ।
नानक करते की जानै करता रचान ॥२॥

पद ३ रे

कई कोटि सिध जती जोगी ।
कई कोटि राजे रस भोगी ॥
कई कोटि पंखी सरप उपाए ।
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ।
कई कोटि देस भू मंडल ॥
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र ।
कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥
सगल समग्री अपनै सूति धारै ।
नानक जिसु जिसु भावै तिसु निसतारै ॥३॥

पद ४ थे

कई कोटि राजस तामस सातक ।
कई कोटि बेद पुरान सिम्रिति अरु सासत ॥
कई कोटि कीए रतन समुंद ।
कई कोटि नाना प्रकार जंत ॥
कई कोटि कीए चिर जीवे ।
कई कोटि गिरि मेर सुवरन थीवे ॥
कई कोटि जख्य किंनर पिसाच ।
कई कोटि भूत प्रेत सूकर म्रिगाच ॥
सभ ते नेरै सभहू ते दूरि ॥
नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥

पद ५ वे

कई कोटि पाताल के वासी ।
कई कोटि नरक सुरग निवासी ॥
कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि ।
कई कोटि बहु जोनी फिरहि ॥
कई कोटि बैठत ही खाहि ।
कई कोटि घालहि थकि पाहि ॥
कई कोटि कीए धनवंत ।
कई कोटि काइआ महि चिंत ॥
जह जह भाणा तह तह राखे ।
नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥

पद ६ वे

कई कोटि भए बैरागी ।
राम नाम संगि तिनि लिव लागी ॥
कई कोटि प्रभ कउ खोजंते ।
आतम महि पारब्रहमु लहंते ॥
कई कोटि दरसन प्रभ अबिनास ॥
कई कोटि मागहि सतसंगु ।
पारब्रहम तिन लागा रंगु ॥
जिन कउ होए आपि सुप्रसंन ।
नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥

पद ७ वे

कई कोटि खाणी अरु खंड ।
कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई कोटि होए अवतार ।
कई जुगति कीनो बिसथार ॥
कई बार पसरिओ पासार ।
सदा सदा इकु एकं कार ॥
कई कोटि कीने बहु भाति ।
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥
ता का अंतु न जानै कोइ ।
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥

पद ८ वे

कई कोटि पारब्रहम के दास ।
तिन होवत आतम परगास ॥
कई कोटि तत के बेते ।
सदा निहारहि एको नेत्रे ॥
कई कोटि नाम रसु पीवहि ।
अमर भए सद सद ही जीवहि ॥
कईकोटि नाम गुन गावहि ।
आतम रसि सुखि सहजि समावहि ॥
अपुने जन कउ सासि सासि समारे ।
नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥

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Last Updated : December 28, 2013

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