सुखमनी साहिब - अष्टपदी ४
हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.
दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे.
( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २६७ )
श्लोक
निरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि ।
जिन कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥१॥
पद १ ले
रमईआ के गुन चेति परानी ।
कवन मूल ते कवन द्रिसटानी ॥
जिनि तूं साजि सवारि सीगारिआ ।
बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध ।
भरि जोबन भोजन सुख सूध ॥
बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन ।
मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन ॥
इहु निरगुनु गुनु कछू न बूझै ।
बखसि लेहु तउ नानक सीझै ॥१॥
पद २ रे
जिह प्रसाहि धर ऊपरि सुखि बसहि ।
सुत भ्रात मीत बनिता संगि हसहि ॥
जिह प्रसादि पीवहि सीतल जला ।
सुखदाई पवनु पावकु अमुला ॥
जिह प्रसादि भोगहि सभि रसा ।
सगल समग्री संगि साथि बसा ॥
दीने हसत पाव करन नेत्र रसना ।
तिसहि तिआगि अवर संगि रचना ।
ऐसे दोख मूड अंध बिआपे ।
नानक काढि लेहु प्रभ आपे ॥२॥
पद ३ रे
आदि अंति जो राखनहारु ।
तिस सिउ प्रीति न करै गवारु ॥
जा की सेवा नव निधि पावै ।
ता सिउ मूडा़ मनु नही लावै ॥
जो ठाकुरु सद सदा हजुरे ।
ता कउ अंधा जानत दूरे ॥
जा की टहल पावै दरगह मानु ।
तिसहि बिसारै मुगधु अजानु ॥
सदा सदा इहु भूलनहारू ।
नानक राखनहारु अपारु ॥३॥
पद ४ थे
रतनु तिआगि कउडी संगि रचै ।
साचु छोडि झूठ संगि मचै ॥
जो छडना सु असथिरु करि मानै ।
जो होवनु सो दूरि परानै ॥
छोडि जाइ तिस परहरै ॥
चंदन लेपु उतारै धोइ ।
गरधब प्रीति भसम संगि होइ ॥
अंध कूप महि पतित बिकराल ।
नानक काढि लोहु प्रभ दइआल ॥४॥
पद ५ वे
करतूति पसू की मानस जाति ।
लोक पचारा करै दिनु राति ॥
बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ ।
छपसि नाहि कछु करै छपाइआ ॥
बाहरि गिआन धिआन इसनान ।
अंतरि बिआपै लोभु सुआनु ॥
अंतरी अगनि बाहरि तनु सुआह ।
गलि पाथर कैसे तरै अथाह ॥
जा कै अंतरि बसै प्रभु आपि ।
नानक ते जन सहजि समाति ॥५॥
पद ६ वे
सुनि अंधा कैसे मारगु पावै ।
करु गहि लेहु ओड़ि निबहावै ॥
कहा बुझारति बूझै डोरा ।
निसि कहीऐ तउ समझै भोरा ॥
कहा बिसनपद गावै गुंग ।
जतन करै तउ भी सुर भंग ॥
कह पिंगुल परबत परभवन ।
नही होत ऊहा उसु गवन ॥
करतार करुणामै दीनु बेनती करै ।
नानक तुमरी किरपा तरै ॥६॥
पद ७ वे
संगि सहाई सु आवै न चीति ।
जो बैराई ता सिउ प्रीति ॥
बलूआ के ग्रिह भीतरि बसै ।
अनद केल माइआ रंगि रसै ॥
द्रिडु करि मानै मनहि प्रतीति ।
कालु न आवै मूड़े चीति ॥
बैर बिरोध काम क्रोध मोह ।
झूठ बिकार महा लोभ ध्रोध ॥
इआहू जुगति बिहाने कई जनम ।
नानक राखि लेहु आपन करि करम ॥७॥
पद ८ वे
तू ठाकुरु तुम पहि अरदासि ।
जीउ पिंडु सभु तेरी रासि ॥
तुम माता पिता हम बारिक तेरे ।
तुमरी क्रिपा महि सूख घनेरे ॥
कोइ न जानै तुमरा अंतु ।
ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥
सगल समग्नी तुमरै सूत्रि धारी ।
तुम ते होइ सु सागिआकारी ॥
तुमरी गति मिति तुम ही जानी ।
नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥
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Last Updated : December 28, 2013
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