सुखमनी साहिब - अष्टपदी १

हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.
दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे.


॥ एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥

अष्टपदी १
( श्री गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्रा. २२ )

श्लोक

आदि गुरए नमह । जुगादि गुरए नमह ।
सतिगुरए नमह । स्त्री गुरदेवए नमह ॥१॥

पद १ ले

सिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ ।
कलि कलेस तन माहि मिटावउ ॥
सिमरउ जासु बिसुंभर एकै ॥
नामु जपत अगनत अनेकै ।
बेद पुरान सिंम्रिति सुधाख्यर ॥
कीने राम नाम इक आख्यर ।
किनका एक जिसु जीअ बसावै ॥
ता की महिमा गनी न आवै ।
कांखी एकै दरस तुहारो ॥
नानक उन संगि मोहि उधारो ॥१॥

सुख मनी सुख अंम्रित प्रभ नामु ।
भगत जना कै मनि बिस्त्राम ॥ रहाउ ॥

पद २ रे

प्रभ कै सिमरनि गरभि न बसै ।
प्रभ कै सिमरनि दूखु जमु नसै ॥
प्रभ कै सिमरनि कालु परहरै ।
प्रभ कै सिमरनि दुसमनु टरै ॥
प्रभ सिमरत कछु बिघनु न लागै ।
प्रभ के सिमरनि अनदिनु जागै ॥
प्रभ के सिमरनि भउ न बिआपै ।
प्रभ कै सिमरनि दुखु न संतापै ॥
प्रभ का सिमरनु साध कै संगि ।
सरब निधान नानक हरि रंगि ॥२॥

पद ३ रे

प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि ।
प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि ॥
प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा ।
प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा ॥
प्रभ कै सिमरनि तीरथ इसनानी ।
प्रभ कै सिमरनि दरगह मानी ॥
प्रभ कै सिमरनि होई सु भला ।
प्रभ कै सिमरनि सुफल फला ॥
से सिमरहि जिन आपि सिमराए ।
नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥

पद ४ थे

प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ।
प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥
प्रभ कै सिमरनि त्रिसना बुझै ।
प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै ॥
प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा ।
प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा ॥
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ ।
अंम्रित नामु रिद माहि समाइ ॥
प्रभ जी बसहि साध की रसना ।
नानक जन का दासनि दसना ॥४॥

पद ५ वे

प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते ।
प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते ॥
प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान ।
प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे ।
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी ।
प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी ॥
सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला ।
नानक जन की मंगै र वाला ॥५॥

पद ६ वे

प्रभ कउ सिमरहि से पर उपकारी ।
प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥
प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे ।
प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता ।
प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे ।
प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे ॥
संत क्रि पा ते अनदिनु जागि ।
नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥

पद ७ वे

प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ।
प्रभ कै सिमरनि कबहु न झूरे ॥
प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी ।
प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी ॥
प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु ।
प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु ॥
प्रभ कै सिमरनि सनहद झुनकार ।
सुखु प्रभ सिमरन का अंतु न पार ॥
सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ ।
नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥

पद ८ वे

हरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए ।
हरि सिमरनि लगि बेद उपाए ॥
हरि सिमरनि भए सिध जती दाते ।
हरि सिमरनि नीच चहु कुंट जाते ॥
हरि सिमरनि धारी सभ धरना ।
सिमरि सिमरि हरि कारन करना ॥
हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा ।
हरि सिमरन महि आपि निरंकारा ॥
करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ ।
नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥

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Last Updated : December 28, 2013

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