अश्वो गजो मेषसर्पौ सर्पः श्वानो बिडालक : ।
मेषो बिडालकश्चैव मूषको मूषकश्च गौ : ॥७६॥
महिषी च ततो व्याघ्रो महिषी व्याघ्र एव च ।
मृगो मृग : सारमेयो वानरो नकुलस्तथा ॥७७॥
नकुलश्च कपि : सिंहस्तुरग : केसरी च गौ : ।
मतंगज : क्रमादेवं भानां प्रोक्तास्तु योनय : ॥७८॥
वरील श्लोकांत अश्विनीपासून रेवतीपर्यंत अभिजित् नक्षत्रासहित २८ नक्षत्रांच्या अनुक्रमें २८ योनि सांगितल्या आहेत , त्या खालील कोष्टकांत पहा .
अश्वि . |
अश्व . |
भर . |
गज |
कृत्ति . |
मेष |
रोहि , |
सर्प . |
मृग . |
सर्प |
आर्द्रा |
श्वान |
पुनर्व . |
मार्जार |
पुष्य |
मेष |
आश्ले . |
मांजर |
मघा |
उंदीर |
पूर्वा |
उंदीर |
उत्तरा |
गाय |
हस्त |
म्हैस |
चित्रा |
व्याघ्र |
स्वाती |
म्हैस |
विशा . |
व्याघ्र |
अनु . |
हरिण |
ज्येष्ठा |
हरिण |
मूळ |
श्वान |
पू . षा . |
वानर |
उ . षा . |
नकुल |
अभि . |
नकुल |
श्रव . |
वानर |
धनि . |
सिंह |
शत . |
अश्व |
पू . भा . |
सिंह |
उ . भा . |
गौ |
रेव . |
गज |