स्वर्भानु n. एक असुर, जिसके द्वारा सूर्य को ग्रस्त करने का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है
[ऋ. ५.२०.५-९] । पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राहु ग्रह संभवतः यही है (राहु देखिये) । इसने सूर्य को अंधःकार से आवृत्त किया, एवं सारी सृष्टि हीनदीन बन गयी । आगे चल कर देवताओं ने साम का पठन कर इस ग्रहण को दूर किया
[पं. ब्रा. ४.५.२, ६.१३] । यह ग्रहण अत्रि के द्वारा
[पं. ब्रा. ६.६.८] ; सोम एवं रुद्र के द्वारा
[श. ब्रा. ५.३.२.२] दूर होने का निर्देश भी प्राप्त है । देवताओं के द्वारा ग्रहण नष्ट करने पर, उस विनष्ट अंधःकार से अनेक वर्ण के मेंढक उत्पन्न हुए, जिनके वर्ण क्रमशः काले, लाल, एवं सफेद थे । इन सारे मेंढकों कों आदित्य को दे कर देवताओं ने विभिन्न औषधियों का निर्माण किया
[तै. सं. २.१.२२] ;
[सां. ब्रा. २४.३] ।
स्वर्भानु n. इस साहित्य में इसे कश्यप एवं दनु का पुत्र कहा गया है
[भा. ६.६.३] ;
[म. आ. ६९.२४] ;
[विष्णु. १.२१.५] । इसकी कन्या का नाम प्रभा (सुप्रभा) था
[विष्णु. १.२१.५] , जिसका विवाह नमुचि
[भा. ६.६.३२] , अथवा नहुष से हुआ था
[ब्रह्मांड. ३.६.२३-२५] ।
स्वर्भानु II. n. एक सैंहिकेय असुर, जो विप्रचित्ति एवं सिंहिका के पुत्रों में से एक था ।